sidhanth

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Wednesday, November 28, 2012

CP ki RAT

आज मैं एक बूढ़े से मिला चुप चाप अँधेरे में भी उसकी झुरियां चमक रही थी ..खुले आसमां के निचे बिलकुल उस बूढ़े बरगद के पेड की तरह जहाँ कभी जीवन था ..आज नहीं है ..उसके बेटे ने उसे घर से निकाल दिया है ..क्या आज हम इतने बड़े होगये हैं की माँ बाप के जीवन का भी फैसला करने वाले बन बैठे है ..मुझे दुःख था ..पर पता नहीं रो नहीं पाया ..उसके दुःख को देख कर या सायद मैं नपुंशक बन बैठा हूँ इस समाज में जहाँ नाचना तो हमारी मुकदर है पर न जाने फैसले कब लेना सीखेंगे ..दुनियां में गम बहूत जाएदा है कुशियाँ थोड़ी सी हैं ..उन्हें माँ बाप के साथ बाटों ..बरगद को काटो नहीं सींचो

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