sidhanth

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Saturday, November 19, 2011

दर्द को छिपाते हम फिरते हैं
हेर गम में हम हस्ते हैं माँगा तो था उस रब से एक मौत
और जब आई वो तो एक कम्ब्कत दर्द बनक.

देश का भ्रष्टाचार और मोहबत का ग्राफ बड़ा तेजी से चल रहा है ....लगे रहो सब बस याद रखना सब तिहार में मत जाना

उन्होंने कहा इजेहार कर दो की कहीं देर न हो जाये
..क्या जमाना आगया ..भला आग को कोई कहाँ दबा पाया है मोह्बत भी आग की तरह होती है जो बस फलते जाती है ..और जल जाता है मोह्बत जब खुद अपने हिन् मोह्बत में तब मोह्बत परवान चढ़ती है

किसी ने कहा हम मोह्बत का इज़हार करने में डरते हैं अब हम उन्हें क्या बतयाए की हमे मोहबत भी हुई तो उनसे हिन् हुई

फर्ज करो की मैं हवा हूँ ..और तुम मुझे सदा अपने सासों में पायोगी ....मैं कहाँ दूर हूँ तुमसे बस इन फासलों की दुरी है और लम्शे खुद ब खुद सिमट जाते हैं तुम्हारे सांसों में मैं कहाँ दूर हूँ तुमसे

मुझे मेरी मौत का एक वजह तो दे ए खुदा की मेरी मौत से कहाँ सुकून मिलता है किसे
बस है कुछ बहते आंशुओं की नमी जो मेरे कब्र से उठ उस असमान से बरसाती है हर रोज
और मैं बस खामोश उस असमान को देखता हूँ

मत ले मेरी बेबशी का तू इम्तिहान ..मैं इतना बेबस पहले तो न था ..पर हर पल में मैं बेबसी पहले इतना नहीं थी की अब तो बेबसी का हर पल इम्तिहान है

उस रोज ये ज़ख़्म बड़ा हल्का था पर बदलते वक़्त ने इसे नासूर बना दिया है ...खाए जा रह है ये मेरी रूह को

वो देख रहे हो असमान में कटी पतंग और वो दौरती भीर उसके पीछे, हर गिरता हुआ इन्सान भी इस कदर पागल बना देता है दुनिया को

दर्द अब पहले से जाएदा हैं हैं एहिं इस दिल के कोने में , पर देखो इस दर्द को दबाये रखना की अब येही उसकी आखरी निसानी है

तारो के बेवफाई तो चाँद को भी न सही गयी देखो तो जरा किस आधे मन से उगा है आसमां में

मैं एक यात्री हूँ जीवन की राहों में मैं अक्सर आप से मिलता हूँ कभी दोस्त की तरह कभी अनजान विचारो के साथ ..कभी भाई बनकर कभी रास्ते में पड़ा एक पत्थर हूँ मैं ..मेरी कोई इक्षा नहीं कोई चाह नहीं है ,मैं आपके खुसी में खुस होता हूँ और गम में मैं आपसे जाएदा वयकुल होता हूँ ..मैं कभी किसी का चाह नहीं हूँ ..न कोई मेरे बारे में सोचता है ..और मुझे इसकी कभी कामना भी नहीं हुई ...मैं तो बस एक यात्री हूँ यद् रखना आपके जीवन में मैं एक बार जर्रूर आता हूँ मुझे अपना समझना ..मैं जीवन के राह में अक्सर आपसे रूप बदल कर मिलता हूँ
एक दन मंदिर में बैठा मन अशांत
पूछ बैठा तुम कौन हो
वो हँश दिया
बोला मैं तुम हो
?
मैं हर स्वांश में हूँ तुम्हारे
मैं तुम्हारे रोम में हूँ
मैं सड़क पर पड़ा वो पत्थर हूँ
मैं नदी की धारा हूँ
मैं उस हरे पत्ते में हूँ
मैं उस मृत पेड में हूँ
मैं उस दीमक में हूँ जो उस पेड़ को खा रहा है
मैं उस वायुन में जो सरहददो को पर केर जाती है
मैं तुम्हे सरीर को जलाने वाली आग हूँ
मैं उस मृत आत्मा में हूँ
मैं इस सृष्टी में हूँ
मैं तुम्हारे समय में हूँ
मैं अजन्मा पैर इस धरती अमबर सब में हूँ
मुझे तुम क्या खोजोगे जब मैं तुम में हिन् हूँ
तुमसे हिन् हूँ
तुम्हारे बुरे अच्छे हेर वक़्त में हूँ
मैं शंकर हूँ
मैं इन्सान हूँ
फिर ये चिंता क्यूँ
जब ये सब मुझ में हिन् निहित है
तुम मुझसे परे नहीं
मैं तुम में हूँ .......
मैं और तुम की कोई दुरी कहाँ
न मेरा अंत है न मेरी कोई आकार
बस मैं मैं हूँ ......
हर पल नाचता हूँ उस बंजारे की तरह ...
न कोई उमंग न कोई गम है बस तुम्हारे लिये गाता हूँ ..
देखो जरा उस आसमा को उन परिंदों को देखो
देखो उनकी कोई निशानी नहीं है इस धरती पर
फिर भी वो मगन उरते जाते है इस नीले आसमा में
फिर तुम क्यूँ धुन्द्ते हो अपनी निशानी
बस उर चलो उस बंजारे की तरह
कौन है यहाँ किसके लिए है ये सब जब इनकी कोई निशानी हिन् नहीं है तेरी
हम बंजारों की येही रित है
बस यद् रखना कोई निशानी नहीं है मेरी
मैं उन पंछियों की तरह हूँ
बस उरता हूँ उस नीले आसमा में ....................


चलो रुक्सत करता हूँ इस रात को ...पर ये मेरी जिंदगी की आखरी रात है जिस तरह कल का सूरज पहला और आखरी होगा हम सब के लिए जी लो हर पल में पता नहीं कल मैं रहू न रहू पर तुम सब हर पल हो मेरे इस दिल में तुम सब हर पल हो मेरे इस दिल में

मैं सिर्फ मैं हिन् क्यूँ मैं क्यूँ नहीं मिल जाता उस खाक में जहाँ सब मिल जाते हैं क्यूँ तू मुझसे इतनी दूर है वहां उस अँधेरे में मुझे भी मिला दे इस गुमनामी में की कहीं तो अंधेरो में पनाह मिल जाये

ये जिंदगी भी हर मोर पर नए लोगो से मिलाती है ताकि तुम इस भीर में गुमनाम न रहो और ये संशो की बंदिश है जो थम जाती है की थोरा और जी ले

चलो एक छलांग और मार लूँ जिंदगी की
मौत तो आज भी और कल भी मेरी है
सुकून है की कोई तो मेरे पास है
जिंदगी तू तो महलों में रहती चल आज मैं देखूं तुझे भी


मेरे मौत का गम नहीं था मुझे गम तो इस बात का था वो राख जहाँ तक जाएगी
काश रेट में उसका घर न ए वरना ये जमाना कहेगा मरने के बाद भी उसकी मोहबत सुलग रही है उन लकड़ीयों में


मत पूछ मुझसे मेरे गम का सबब
ये बता मैं कैसे बन जायुं तेरे मुस्कुराने की वजह

अब तो हर रोज टकरा जाता हूँ मैं खुद से
और पता नहीं फिर कहाँ खो जाता हूँ उन राहों पर

सुकून मिलता है लोगो को मुस्कुराता देख
बस मुस्कुरा लेता हूँ उन मुस्कुराते लबो को देख कर
वजह न पूछो ये एक अधूरी कहानी है ..फुर्सत हिन् न मिली उन पन्नो को देखने की
जो आज भी दबे हैं मेरे अरमानो से

हंश लेता हूँ कभी अपने इन बहते जस्बातों पर
पर कबक्थ अब तो अंशुओं पर भी ये लब मुस्कुरा देते हैं


कितने लोग गुजर जाते हैं इन राहों पर
पर वो मिल का पत्थर जो रह गुजर था कभी हमारे राहों का आज भी वही खरा है किसी अजनबी के इन्तेजार में


रुकसत कर गयी मुझे या दे गयी गम
इस सरीर को तनहा यहीं इस भीर में