sidhanth

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Saturday, November 19, 2011

एक दन मंदिर में बैठा मन अशांत
पूछ बैठा तुम कौन हो
वो हँश दिया
बोला मैं तुम हो
?
मैं हर स्वांश में हूँ तुम्हारे
मैं तुम्हारे रोम में हूँ
मैं सड़क पर पड़ा वो पत्थर हूँ
मैं नदी की धारा हूँ
मैं उस हरे पत्ते में हूँ
मैं उस मृत पेड में हूँ
मैं उस दीमक में हूँ जो उस पेड़ को खा रहा है
मैं उस वायुन में जो सरहददो को पर केर जाती है
मैं तुम्हे सरीर को जलाने वाली आग हूँ
मैं उस मृत आत्मा में हूँ
मैं इस सृष्टी में हूँ
मैं तुम्हारे समय में हूँ
मैं अजन्मा पैर इस धरती अमबर सब में हूँ
मुझे तुम क्या खोजोगे जब मैं तुम में हिन् हूँ
तुमसे हिन् हूँ
तुम्हारे बुरे अच्छे हेर वक़्त में हूँ
मैं शंकर हूँ
मैं इन्सान हूँ
फिर ये चिंता क्यूँ
जब ये सब मुझ में हिन् निहित है
तुम मुझसे परे नहीं
मैं तुम में हूँ .......
मैं और तुम की कोई दुरी कहाँ
न मेरा अंत है न मेरी कोई आकार
बस मैं मैं हूँ ......

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