sidhanth

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Saturday, November 19, 2011

हर पल नाचता हूँ उस बंजारे की तरह ...
न कोई उमंग न कोई गम है बस तुम्हारे लिये गाता हूँ ..
देखो जरा उस आसमा को उन परिंदों को देखो
देखो उनकी कोई निशानी नहीं है इस धरती पर
फिर भी वो मगन उरते जाते है इस नीले आसमा में
फिर तुम क्यूँ धुन्द्ते हो अपनी निशानी
बस उर चलो उस बंजारे की तरह
कौन है यहाँ किसके लिए है ये सब जब इनकी कोई निशानी हिन् नहीं है तेरी
हम बंजारों की येही रित है
बस यद् रखना कोई निशानी नहीं है मेरी
मैं उन पंछियों की तरह हूँ
बस उरता हूँ उस नीले आसमा में ....................


चलो रुक्सत करता हूँ इस रात को ...पर ये मेरी जिंदगी की आखरी रात है जिस तरह कल का सूरज पहला और आखरी होगा हम सब के लिए जी लो हर पल में पता नहीं कल मैं रहू न रहू पर तुम सब हर पल हो मेरे इस दिल में तुम सब हर पल हो मेरे इस दिल में

मैं सिर्फ मैं हिन् क्यूँ मैं क्यूँ नहीं मिल जाता उस खाक में जहाँ सब मिल जाते हैं क्यूँ तू मुझसे इतनी दूर है वहां उस अँधेरे में मुझे भी मिला दे इस गुमनामी में की कहीं तो अंधेरो में पनाह मिल जाये

ये जिंदगी भी हर मोर पर नए लोगो से मिलाती है ताकि तुम इस भीर में गुमनाम न रहो और ये संशो की बंदिश है जो थम जाती है की थोरा और जी ले

चलो एक छलांग और मार लूँ जिंदगी की
मौत तो आज भी और कल भी मेरी है
सुकून है की कोई तो मेरे पास है
जिंदगी तू तो महलों में रहती चल आज मैं देखूं तुझे भी


मेरे मौत का गम नहीं था मुझे गम तो इस बात का था वो राख जहाँ तक जाएगी
काश रेट में उसका घर न ए वरना ये जमाना कहेगा मरने के बाद भी उसकी मोहबत सुलग रही है उन लकड़ीयों में


मत पूछ मुझसे मेरे गम का सबब
ये बता मैं कैसे बन जायुं तेरे मुस्कुराने की वजह

अब तो हर रोज टकरा जाता हूँ मैं खुद से
और पता नहीं फिर कहाँ खो जाता हूँ उन राहों पर

सुकून मिलता है लोगो को मुस्कुराता देख
बस मुस्कुरा लेता हूँ उन मुस्कुराते लबो को देख कर
वजह न पूछो ये एक अधूरी कहानी है ..फुर्सत हिन् न मिली उन पन्नो को देखने की
जो आज भी दबे हैं मेरे अरमानो से

हंश लेता हूँ कभी अपने इन बहते जस्बातों पर
पर कबक्थ अब तो अंशुओं पर भी ये लब मुस्कुरा देते हैं


कितने लोग गुजर जाते हैं इन राहों पर
पर वो मिल का पत्थर जो रह गुजर था कभी हमारे राहों का आज भी वही खरा है किसी अजनबी के इन्तेजार में


रुकसत कर गयी मुझे या दे गयी गम
इस सरीर को तनहा यहीं इस भीर में

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