sidhanth

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Thursday, November 29, 2012

तन्हाई में पढो ग़जल कभी किसी सायर का ..तुम्हे पता चलेगा की वो भी अकेले हिन् था जब उसने ये नज़्म लिखा होगा माचिस की तिल्ली भी बड़ी अजीब होती है ...बिलकुल हमारी खुशियों की तरह ..जला प्रकाश फैला ..मुस्कान बिखरे ..और फिर बुझ गयी वो तिल्ली की कभी जली हिन् नहीं थी वैसे हिन् गम के काले चादर को ओढ़ कर ..और एक हल्का धुआं ..जो ये बताता रहा की वो आग अभी जिविती है ! ----------- बीडी भी बड़ी अलग चीज होती है , सूखे पत्ते जैसे हमारे और आपके अरमान , जिसपर गुजरता समय आग की तरह धोक्ता है ..और लहक जाती है जीवन (बीडी) और फूँक से निकल जाता है धुआं (आत्मा )...और सुलग टी रह जाती है वो २५पैसे की बीडी -------------- रक्त से नहाउठती है वसुधरा जब किसान अपने हक के लिए लड़ता मौत उसका वजूद नहीं विधाता की दें है युद्ध तो बस एक विकल्प है हक का और वो निरंतर चलता रहा है और रहेगा जब तक राजनीती के गद्दी पर बैठा दलाल सौदा करता रहेगा किसान तब तक अपने लहू से इस धरा पर "लाल सलाम लिखता रहेगा " ------------------ मैं तुम्हे चाहता पर तुम जान जाती काश उस प्यार को जो सिमट कर रह गया इन बाहों में जो सायद तेरा था , पर तुम जान जाती काश उस प्यार को जो इन आँखों से बह गया अंशु बन तेरी याद में काश तुम उस नमी को महसूस कर पाती तो जान जाती उस रात भी मैं आया था तेरे घर पर पर काश तुम जान जाती ..वो आखरी रात थी ..काश तुम जान जाती की उस प्यार का मोल लगा था उस रात के बाज़ार में काश तुम जान जाती उस प्यार को जो बस अब सिमट कर रह गया है मेरे इन दो बाहों में ..काश तुम जान जाती --------------- दर्द एक पत्थर की तरह जिसे तुम जब एक स्थिर तालाब में फेंकते हो तो वो तरंग की तरह फैलता है और जब तक तुम संभलो वो दर्द का तरंग जीवन में ज़हर की तरह घुलता जाता है जब तक वो किनारे से न मिले ..मैंने तो तो ये पत्थर सागर में फेंका है देखूं कब ये किनारे से मिले ---------------- स्वर्ग में बैठ युधिस्ठिर तुम भी देख लो आज अब एक तुम हिन् नहीं जो देश को चौसर पर दाव रख सकते थे ..आज सम्पूर्ण आर्यवर्त हर दिन देश को दाव पर रख यहाँ चौसर खेलता है ------------ बुराइ पर अच्छाइ की जीत हो सो इलिए मैंने आज सारा न्यूज़ चैनल हिन् डिलीट कर दिया -----------

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