sidhanth

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Wednesday, November 28, 2012

इन्तेजार है उस का कब से न जाने कब से सायद जब मैंने ऑंखें खोली थी तब से सायद मैंने जब सोचना सुरु किया था सायद वो स्कूल का पहला दिन था तब से सायद उसका बात्तों हिन् बात्तों में लटों को कान के पीछे करना तब से पता नहीं कब से दिल में छुपा कर बैठा हूँ तस्वीर उसकी कब से कब से याद नहीं कब से जी रहा हूँ उसके लिए कब से पता नहीं गुजर गए कितने साल मिला नहीं हूँ जब से बिछड़ा हूँ उससे अब कहाँ है पता नहीं पर अब भी वो मेरे दिल में है पता नहीं कब से

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