sidhanth

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Thursday, November 29, 2012

हम भगोरो की भी अजीब जिंदगी कहाँ की माटी में खरे हुए और कब गुजर गये तन से पता हिन् न चला बियावान हिन् घर हमारा नदियाँ हिन् रास्ते पुलिस की गोली मुकदर सरकार देती है या तो इनाम सर पर या ??? सोचता खेती करूँगा ज़मीन पर सुना पानी हिन् नहीं आती न ज़मीन से न आसमान से ...हमने बन्दुक उठा ली दिल से नहीं पेट से हम तो कामरेड हैं ..हसिया खेत में चली नहीं ..अब गर्दन पर हिन् चलते हैं ...मैंने कहा हक मानगो और उसने कहा तुझे मिला क्या ....और फिर हम खो गए भगोरो बन कर

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