sidhanth
Wednesday, November 28, 2012
समसान
आजकल हमारा अक्स हिन् हमसे खफा रहने लगा है
कल रात उसने आईने के सामने ये बात कही हमसे
हमने कफा की वजह पूछी तो उसने आईने से हमारा वजूद हिन् मिटा डाला
कभी सोचता हूँ समसान में
कुछ पल गुजारूं उन बेजुबानो के साथ
कितना सुकून होगा उन्हें धरती से लिपट कर
रहने में यहाँ तो फलों के बीज भी दो पल टिकते हैं
कैसे वो सुकून से रहता होगा
अन्दर बिना खुले हवे के
न बारिश की बूंद ..न चमकती धुप की रौशनी
न अपनों का साथ बस एक खमोशी
कभी कभी कोई आजाता होगा आसपास कुदाल चलाने
और दे जाता होगा एक दोस्त उन्हें ...
कैसे वो बात करते होंगे उन पत्थरो से
..क्या कोई आवाज जाती होगी वहां
कैसा खामोश बस्ती बना रखा है उन्होंने
और हम यहाँ ऊपर जिंदे होकर भी ख़ामोशी के साथ जी रहे हैं
सोचता हूँ कुछ पल गुजारूं उन बेजुबानो के साथ
बिना खुले हवे के बिना रौशनी के ..बिना तुम्हारे जो सायद यहीं कहीं दफ़न हो
मेरे यादों के साथ ...काश कोई इन पत्थरों को हटा ता तो मैं भी जान पाता
कितना कुछ दबा हैं सायद जो काश कभी मेरा होपाता अब नहीं ...
काश ....उन दो सब्दों के बिना जीवन आज भी अधूरी है कल भी
बिन तेरे
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