संदूक ...
कल हिन् की बात थी घर में बैठा ..अपनी पुराणी संदूक को देख रहा था ...फिर मैंने उस यादों से भरे बक्से को खोल दिया ...न जाने मेरी माँ ने कैसे बचपन के बीते मेरे हर पल को उसमे समेट कर रखा था ...वो टूटी रेलगाड़ी ,,,वो बिना नाक का जोकर ..वो आँखों से रौशनी करने वाला भालू ...छोटे छोटे मेरे कपडे हर एक चीज ...फिर मैंने उस संदूक को बंद कर दिया ...और बचपन फिर खो गया उस एक ताले को लगते हिन्
No comments:
Post a Comment