मृत्यु अन्त है पैर मैं मृत्यु नहीं
जिन्दगी सुन्दर है पर जिन्दगी अपनी नहीं
खोजता हूँ किसी की नजरो से अपनी जिन्दगी
पर भटकती उन आँखों में कोई सपना नहीं
हर लब्ज में छुपी है एक आह्ह पर कोई सुनता नहीं
इन सपनो की रंगीन dunyian मैं कोई सपना हकीकत नहीं
हाँ जिन्दगी अनमोल है पर मौत से परे नहीं
मैं खामोश जिन्दगी की इन kashmashat से भरी राहों पर अकेला नहीं
फिर मौत से मैं क्यूँ डरु जो अपना नहीं
चलो एक बार फिर जिन्दगी की खोज में
मुस्कुराते खवाबों के देश में
अपनों के देश में
अपनी माटी के गोद में
मचलती जिन्दगी के आगोश में
मृत्यु तो अपनी संगनी है एक दिन आयेगी
दुल्हन की तरह और विदा कर जाएगी मुझे जिन्दगी की गोद से
मैं चला एक अकरी कोशिश जिन्दगी की और
अपनों की और
मैं चला ...............
sidhanth
Wednesday, May 12, 2010
Tuesday, May 11, 2010
न हो साथ कोई अकेले बढ़ो तुम
सफलता तुम्हारे चरण चूम लेगी।
सदा जो जगाये बिना ही जगा है
अँधेरा उसे देखकर ही भगा है।
वही बीज पनपा पनपना जिसे था
घुना क्या किसी के उगाये उगा है
अगर उग सको तो उगो सूर्य से तुम
प्रखरता तुम्हारे चरण चूम लेगी॥
सही राह को छोड़कर जो मुड़े
वही देखकर दूसरों को कुढ़े हैं।
बिना पंख तौले उड़े जो गगन में
न सम्बन्ध उनके गगन से जुड़े हैं
अगर बन सको तो पखेरु बनो तुम
प्रवरता तुम्हारे चरण चूम लेगी॥
न जो बर्फ की आँधियों से लड़े हैं
कभी पग न उसके शिखर पर पड़े हैं।
जिन्हें लक्ष्य से कम अधिक प्यार खुद से
वही जी चुराकर तरसते खड़े हैं।
अगर जी सको तो जियो जूझकर तुम
अमरता तुम्हारे चरण चूम लेगी॥
सफलता तुम्हारे चरण चूम लेगी।
सदा जो जगाये बिना ही जगा है
अँधेरा उसे देखकर ही भगा है।
वही बीज पनपा पनपना जिसे था
घुना क्या किसी के उगाये उगा है
अगर उग सको तो उगो सूर्य से तुम
प्रखरता तुम्हारे चरण चूम लेगी॥
सही राह को छोड़कर जो मुड़े
वही देखकर दूसरों को कुढ़े हैं।
बिना पंख तौले उड़े जो गगन में
न सम्बन्ध उनके गगन से जुड़े हैं
अगर बन सको तो पखेरु बनो तुम
प्रवरता तुम्हारे चरण चूम लेगी॥
न जो बर्फ की आँधियों से लड़े हैं
कभी पग न उसके शिखर पर पड़े हैं।
जिन्हें लक्ष्य से कम अधिक प्यार खुद से
वही जी चुराकर तरसते खड़े हैं।
अगर जी सको तो जियो जूझकर तुम
अमरता तुम्हारे चरण चूम लेगी॥
Sunday, May 9, 2010
MAA
Dard hua to dil se awaz aye maa
Takleef hue to yaad teri aye maa
Jab Sab na chor deya Mutlabi bewafa kah ke
Phir majhey tere achal ki yaad aye maa
Main kitna badnaseeb hoon
Logo se piyaar maanga maine Mile majhey Tanhai
Tuney Bin maanga Kitna piyaar deya
Aur main teri hi kadar na kar saka maa
BadGumani mein har ek ko maine Seena se lagaya
Bus Badnaseebi to dheko bus tujhey hi apne galey se na laagaya maa
Duniya ki ranginyon mein kohya raha
bus ek tujh hi ko bhool ka sab ke pecha bhagta raha
Teri Tanhaiyon mein ek pal bhi tere saath na raha
Main badnaseeb teri maafi ka kabil bhi na raha
Jab Hosh mein aya To maloom hua ke
kio apna nehi bus tere siwa maa
Teri goad main sar rakh ke ro ro ke mout-e-faryad ki dua ki
Maa na rote rote apni zindagi apni khushiya bhi mere naam ki
Main Kitna beaqal kamzarf hoon
Tera khwab bhi pura na kar saka main tere leya kuch bhi na kar saka maa
Maine kitne dhuk deya
Aur tuney uff tak na ki maa
tuney kabhi na saath chora
Na kabhi kuch kaha majhey tuney maa
bus ek khwab hai zindagi ka
beshak kuch mile na mile
main kuch bano ya na bano
bus ek arman hai zindagi ka
Main ek dafa teri goad main sar rakh so sako maa
woh sakoon-e-neend pana chahta hoon maa
Bohat dard ho raha hai maa
apne hathon se mere zakham-e-dard ko mita do maa
Takleef hue to yaad teri aye maa
Jab Sab na chor deya Mutlabi bewafa kah ke
Phir majhey tere achal ki yaad aye maa
Main kitna badnaseeb hoon
Logo se piyaar maanga maine Mile majhey Tanhai
Tuney Bin maanga Kitna piyaar deya
Aur main teri hi kadar na kar saka maa
BadGumani mein har ek ko maine Seena se lagaya
Bus Badnaseebi to dheko bus tujhey hi apne galey se na laagaya maa
Duniya ki ranginyon mein kohya raha
bus ek tujh hi ko bhool ka sab ke pecha bhagta raha
Teri Tanhaiyon mein ek pal bhi tere saath na raha
Main badnaseeb teri maafi ka kabil bhi na raha
Jab Hosh mein aya To maloom hua ke
kio apna nehi bus tere siwa maa
Teri goad main sar rakh ke ro ro ke mout-e-faryad ki dua ki
Maa na rote rote apni zindagi apni khushiya bhi mere naam ki
Main Kitna beaqal kamzarf hoon
Tera khwab bhi pura na kar saka main tere leya kuch bhi na kar saka maa
Maine kitne dhuk deya
Aur tuney uff tak na ki maa
tuney kabhi na saath chora
Na kabhi kuch kaha majhey tuney maa
bus ek khwab hai zindagi ka
beshak kuch mile na mile
main kuch bano ya na bano
bus ek arman hai zindagi ka
Main ek dafa teri goad main sar rakh so sako maa
woh sakoon-e-neend pana chahta hoon maa
Bohat dard ho raha hai maa
apne hathon se mere zakham-e-dard ko mita do maa
Monday, April 26, 2010
सामधेनी
झंझा सोई, तूफान रुका,
प्लावन जा रहा कगारों में;
जीवित है सबका तेज किन्तु,
अब भी तेरे हुंकारों में।
दो दिन पर्वत का मूल हिला,
फिर उतर सिन्धु का ज्वार गया,
पर, सौंप देश के हाथों में
वह एक नई तलवार गया।
’जय हो’ भारत के नये खड्ग;
जय तरुण देश के सेनानी!
जय नई आग! जय नई ज्योति!
जय नये लक्ष्य के अभियानी!
स्वागत है, आओ, काल-सर्प के
फण पर चढ़ चलने वाले!
स्वागत है, आओ, हवनकुण्ड में
कूद स्वयं बलने वाले!
मुट्ठी में लिये भविष्य देश का,
वाणी में हुंकार लिये,
मन से उतार कर हाथों में
निज स्वप्नों का संसार लिये।
सेनानी! करो प्रयाण अभय,
भावी इतिहास तुम्हारा है;
ये नखत अमा के बुझते हैं,
सारा आकाश तुम्हारा है।
जो कुछ था निर्गुण, निराकार,
तुम उस द्युति के आकार हुए,
पी कर जो आग पचा डाली,
तुम स्वयं एक अंगार हुए।
साँसों का पाकर वेग देश की
हवा तवी-सी जाती है,
गंगा के पानी में देखो,
परछाईं आग लगाती है।
विप्लव ने उगला तुम्हें, महामणि
उगले ज्यों नागिन कोई;
माता ने पाया तुम्हें यथा
मणि पाये बड़भागिन कोई।
लौटे तुम रूपक बन स्वदेश की
आग भरी कुरबानी का,
अब "जयप्रकाश" है नाम देश की
आतुर, हठी जवानी का।
कहते हैं उसको "जयप्रकाश"
जो नहीं मरण से डरता है,
ज्वाला को बुझते देख, कुण्ड में
स्वयं कूद जो पड़ता है।
है "जयप्रकाश" वह जो न कभी
सीमित रह सकता घेरे में,
अपनी मशाल जो जला
बाँटता फिरता ज्योति अँधेरे में।
है "जयप्रकाश" वह जो कि पंगु का
चरण, मूक की भाषा है,
है "जयप्रकाश" वह टिकी हुई
जिस पर स्वदेश की आशा है।
हाँ, "जयप्रकाश" है नाम समय की
करवट का, अँगड़ाई का;
भूचाल, बवण्डर के ख्वाबों से
भरी हुई तरुणाई का।
है "जयप्रकाश" वह नाम जिसे
इतिहास समादर देता है,
बढ़ कर जिसके पद-चिह्नों को
उर पर अंकित कर लेता है।
ज्ञानी करते जिसको प्रणाम,
बलिदानी प्राण चढ़ाते हैं,
वाणी की अंग बढ़ाने को
गायक जिसका गुण गाते हैं।
आते ही जिसका ध्यान,
दीप्त हो प्रतिभा पंख लगाती है,
कल्पना ज्वार से उद्वेलित
मानस-तट पर थर्राती है।
वह सुनो, भविष्य पुकार रहा,
"वह दलित देश का त्राता है,
स्वप्नों का दृष्टा "जयप्रकाश"
भारत का भाग्य-विधाता है।"
प्लावन जा रहा कगारों में;
जीवित है सबका तेज किन्तु,
अब भी तेरे हुंकारों में।
दो दिन पर्वत का मूल हिला,
फिर उतर सिन्धु का ज्वार गया,
पर, सौंप देश के हाथों में
वह एक नई तलवार गया।
’जय हो’ भारत के नये खड्ग;
जय तरुण देश के सेनानी!
जय नई आग! जय नई ज्योति!
जय नये लक्ष्य के अभियानी!
स्वागत है, आओ, काल-सर्प के
फण पर चढ़ चलने वाले!
स्वागत है, आओ, हवनकुण्ड में
कूद स्वयं बलने वाले!
मुट्ठी में लिये भविष्य देश का,
वाणी में हुंकार लिये,
मन से उतार कर हाथों में
निज स्वप्नों का संसार लिये।
सेनानी! करो प्रयाण अभय,
भावी इतिहास तुम्हारा है;
ये नखत अमा के बुझते हैं,
सारा आकाश तुम्हारा है।
जो कुछ था निर्गुण, निराकार,
तुम उस द्युति के आकार हुए,
पी कर जो आग पचा डाली,
तुम स्वयं एक अंगार हुए।
साँसों का पाकर वेग देश की
हवा तवी-सी जाती है,
गंगा के पानी में देखो,
परछाईं आग लगाती है।
विप्लव ने उगला तुम्हें, महामणि
उगले ज्यों नागिन कोई;
माता ने पाया तुम्हें यथा
मणि पाये बड़भागिन कोई।
लौटे तुम रूपक बन स्वदेश की
आग भरी कुरबानी का,
अब "जयप्रकाश" है नाम देश की
आतुर, हठी जवानी का।
कहते हैं उसको "जयप्रकाश"
जो नहीं मरण से डरता है,
ज्वाला को बुझते देख, कुण्ड में
स्वयं कूद जो पड़ता है।
है "जयप्रकाश" वह जो न कभी
सीमित रह सकता घेरे में,
अपनी मशाल जो जला
बाँटता फिरता ज्योति अँधेरे में।
है "जयप्रकाश" वह जो कि पंगु का
चरण, मूक की भाषा है,
है "जयप्रकाश" वह टिकी हुई
जिस पर स्वदेश की आशा है।
हाँ, "जयप्रकाश" है नाम समय की
करवट का, अँगड़ाई का;
भूचाल, बवण्डर के ख्वाबों से
भरी हुई तरुणाई का।
है "जयप्रकाश" वह नाम जिसे
इतिहास समादर देता है,
बढ़ कर जिसके पद-चिह्नों को
उर पर अंकित कर लेता है।
ज्ञानी करते जिसको प्रणाम,
बलिदानी प्राण चढ़ाते हैं,
वाणी की अंग बढ़ाने को
गायक जिसका गुण गाते हैं।
आते ही जिसका ध्यान,
दीप्त हो प्रतिभा पंख लगाती है,
कल्पना ज्वार से उद्वेलित
मानस-तट पर थर्राती है।
वह सुनो, भविष्य पुकार रहा,
"वह दलित देश का त्राता है,
स्वप्नों का दृष्टा "जयप्रकाश"
भारत का भाग्य-विधाता है।"
Random Thought
kash koi humare bhi mulk ka hota yahan
kash koi to hale dil sunta yahan
barshon se nahi dekhi hai mati apne watan ki
kash is pardesh me koi to kehta apna
har ka gum to hume bhi hai
per anshu tab nikalte hain
jab apne hin larte hain desh me
samant baithe bhir me taliyan bajate hain
rota hai dil jab apne hin
apno ke lahoo se tilak lagte hain
aur dur baitha samant jeet ka jashan manate hain..
kash koi to hale dil sunta yahan
barshon se nahi dekhi hai mati apne watan ki
kash is pardesh me koi to kehta apna
har ka gum to hume bhi hai
per anshu tab nikalte hain
jab apne hin larte hain desh me
samant baithe bhir me taliyan bajate hain
rota hai dil jab apne hin
apno ke lahoo se tilak lagte hain
aur dur baitha samant jeet ka jashan manate hain..
Thursday, April 22, 2010
मैं कौन हूँ
ढलती सूरज की रौशनी में ढलता इन्सान
या सुबह का तेज प्रखर सा हूँ
जल हूँ
या चेतन
वायुन हूँ या वीरान
मैं कौन हूँ
इन्द्रदनुशी रंग हूँ
या बंजारे सा भटकता जीवन हूँ
सावन का अल्हर बादल हूँ
या gasah पे बिची ओश की बुँदे हूँ
रगों में दौरता लहूँ हूँ
या समुद्र की और दौर लगाती नदी की धरा हूँ
आकाश हूँ
या पाताल की गहराई में खोया विनाश हूँ
भीर हूँ
या भीर को खींचता एक धवनी हूँ
शोर हूँ
या शांत हूँ
मैं जीवन का अंत हूँ
उस मौत का उद्गोस हूँ
मैं काल हूँ
मैं हिन् जीवन हूँ
मैं शंकर हूँ
मैं इन्सान हूँ
7.30 pm sidhantha
ढलती सूरज की रौशनी में ढलता इन्सान
या सुबह का तेज प्रखर सा हूँ
जल हूँ
या चेतन
वायुन हूँ या वीरान
मैं कौन हूँ
इन्द्रदनुशी रंग हूँ
या बंजारे सा भटकता जीवन हूँ
सावन का अल्हर बादल हूँ
या gasah पे बिची ओश की बुँदे हूँ
रगों में दौरता लहूँ हूँ
या समुद्र की और दौर लगाती नदी की धरा हूँ
आकाश हूँ
या पाताल की गहराई में खोया विनाश हूँ
भीर हूँ
या भीर को खींचता एक धवनी हूँ
शोर हूँ
या शांत हूँ
मैं जीवन का अंत हूँ
उस मौत का उद्गोस हूँ
मैं काल हूँ
मैं हिन् जीवन हूँ
मैं शंकर हूँ
मैं इन्सान हूँ
7.30 pm sidhantha
Saturday, April 17, 2010
vikash
मैं युग परिवर्तन का हुंकार करने आया हूँ
पर अपनों को हीं यहाँ डरा पाया हूँ
आज भी जाती के नाम पर कटी धरा है
शोषित आज भी शोषित है
शोषण करता आज भी मुस्कुराता है
भूमि हीरों के हार के सामान गले में चमकती है
पर एक किसान से पूछो वो इसको क्या समझती है ..
मैं आया था जनमानस को जगाने
एक भिसन हुंकार करने
पर इनको सोपुं ये डोर जो खुद से हैं कटे
और खुद को बापू के पुत्र हैं कहते
है विधाता इन्सान नहीं तो फिर
क्यूँ चढ़ बैठा है तू दूसरों की जिन्दगी पर
बदलाव की आग जला वरना इस ठण्ड में तो
तू मरेगा हीं...
जय श्री राम
पर अपनों को हीं यहाँ डरा पाया हूँ
आज भी जाती के नाम पर कटी धरा है
शोषित आज भी शोषित है
शोषण करता आज भी मुस्कुराता है
भूमि हीरों के हार के सामान गले में चमकती है
पर एक किसान से पूछो वो इसको क्या समझती है ..
मैं आया था जनमानस को जगाने
एक भिसन हुंकार करने
पर इनको सोपुं ये डोर जो खुद से हैं कटे
और खुद को बापू के पुत्र हैं कहते
है विधाता इन्सान नहीं तो फिर
क्यूँ चढ़ बैठा है तू दूसरों की जिन्दगी पर
बदलाव की आग जला वरना इस ठण्ड में तो
तू मरेगा हीं...
जय श्री राम
Thursday, April 15, 2010
BY prasoon joshi
इस बार नहीं
इस बार जब वह छोटी सी बच्ची
मेरे पास अपनी खरोंच लेकर आएगी
उसे फु-फु करके नहीं बहलाऊंगा
पनपने दूंगा उसकी टीस को
इस बार नहीं
इस बार जब मैं चेहरों पर दर्द लिखूंगा
नहीं गाऊंगा गीत पीड़ा भुला देने वाले
दर्द को रिसने दूँगा
उतरने दूँगा गहरे
इस बार नहीं
इस बार मैं ना मरहम लगाऊंगा
ना ही उठाऊंगा रुई के फाहे
और ना ही कहूँगा कि तुम आँखें बंद कर लो,
गर्दन उधर कर लो मैं दवा लगाता हूँ
देखने दूँगा सबको
हम सबको
खुले नंगे घाव
इस बार नहीं
इस बार जब उलझनें देखूंगा,
छटपटाहट देखूंगा
नहीं दौडूँगा उलझी डोर लपेटने
उलझने दूँगा जब तक उलझ सके
इस बार नहीं
इस बार कर्म का हवाला दे कर नहीं उठाऊंगा औजार
नहीं करूँगा फिर से एक नई शुरूआत
नहीं बनूँगा एक मिसाल एक कर्मयोगी कि
नहीं आने दूँगा जिंदगी को आसानी से पटरी पर
उतरने दूँगा उसे कीचड़ में टेढ़े मेढ़े रास्तों पे
नहीं सूखने दूँगा दीवारों पर लगा खून
हल्का नहीं पड़ने दूँगा उसका रंग
इस बार नहीं बनने दूँगा उसे इतना लाचार
कि पान कि पीक और खून का फर्क ही ख़त्म हो जाए
इस बार नहीं
इस बार घावों को देखना है
गौर से
थोड़ा लंबे वक्त तक
कुछ फैसले
और उसके बाद हौसले
कहीं तो शुरुआत करनी ही होगी
इस बार यही तय किया है
इस बार जब वह छोटी सी बच्ची
मेरे पास अपनी खरोंच लेकर आएगी
उसे फु-फु करके नहीं बहलाऊंगा
पनपने दूंगा उसकी टीस को
इस बार नहीं
इस बार जब मैं चेहरों पर दर्द लिखूंगा
नहीं गाऊंगा गीत पीड़ा भुला देने वाले
दर्द को रिसने दूँगा
उतरने दूँगा गहरे
इस बार नहीं
इस बार मैं ना मरहम लगाऊंगा
ना ही उठाऊंगा रुई के फाहे
और ना ही कहूँगा कि तुम आँखें बंद कर लो,
गर्दन उधर कर लो मैं दवा लगाता हूँ
देखने दूँगा सबको
हम सबको
खुले नंगे घाव
इस बार नहीं
इस बार जब उलझनें देखूंगा,
छटपटाहट देखूंगा
नहीं दौडूँगा उलझी डोर लपेटने
उलझने दूँगा जब तक उलझ सके
इस बार नहीं
इस बार कर्म का हवाला दे कर नहीं उठाऊंगा औजार
नहीं करूँगा फिर से एक नई शुरूआत
नहीं बनूँगा एक मिसाल एक कर्मयोगी कि
नहीं आने दूँगा जिंदगी को आसानी से पटरी पर
उतरने दूँगा उसे कीचड़ में टेढ़े मेढ़े रास्तों पे
नहीं सूखने दूँगा दीवारों पर लगा खून
हल्का नहीं पड़ने दूँगा उसका रंग
इस बार नहीं बनने दूँगा उसे इतना लाचार
कि पान कि पीक और खून का फर्क ही ख़त्म हो जाए
इस बार नहीं
इस बार घावों को देखना है
गौर से
थोड़ा लंबे वक्त तक
कुछ फैसले
और उसके बाद हौसले
कहीं तो शुरुआत करनी ही होगी
इस बार यही तय किया है
Sunday, April 4, 2010
अब थक गया हूँ
थोरी देर रुकना चाहता हूँ
सुबह की धुप से झुलसे बदन के
लिए एक चाह चाहता हूँ
अपनी माँ के आंचल में थोरा
सोना चाहता हूँ
दो साल होगये उन गलियों में
गए हुए एक बार वो खोया बचपन चाहता हूँ
अपनी माँ के आंचल में थोरा
सोना चाहता हूँ,
दादी की वो कहानी
चाहेरा की झुरिओं में खोयी यादों
की शीलवत में झांकती मेरे बचपन के दिन
चाहता हूँ
महानगरों की धुप में अपनों को
खोजता हूँ
बर्षों की दुरिओं को मिटने को बेताब दिल को रोकता हूँ
कल सुबह फिर एक कोशिश अपनी
जिन्दगी को खोजने की
सूखते होटों में जवानी को जलाना चाहता हूँ
अपनी माँ के आंचल में थोरा
सोना चाहता हूँ
थोरी देर रुकना चाहता हूँ
सुबह की धुप से झुलसे बदन के
लिए एक चाह चाहता हूँ
अपनी माँ के आंचल में थोरा
सोना चाहता हूँ
दो साल होगये उन गलियों में
गए हुए एक बार वो खोया बचपन चाहता हूँ
अपनी माँ के आंचल में थोरा
सोना चाहता हूँ,
दादी की वो कहानी
चाहेरा की झुरिओं में खोयी यादों
की शीलवत में झांकती मेरे बचपन के दिन
चाहता हूँ
महानगरों की धुप में अपनों को
खोजता हूँ
बर्षों की दुरिओं को मिटने को बेताब दिल को रोकता हूँ
कल सुबह फिर एक कोशिश अपनी
जिन्दगी को खोजने की
सूखते होटों में जवानी को जलाना चाहता हूँ
अपनी माँ के आंचल में थोरा
सोना चाहता हूँ
Thursday, April 1, 2010
Sunday, March 28, 2010
सुबह जब भी मेरी आंखे खुलती हैं पिछले कुछ दिनों से एक अजीब सा फिजाओं में दर्द सा मह्सुश होता है ,इन सबो में कुछ राज सा दबा है .मैं जहाँ रहता हूँ वहां आसपास सायद देश का सबसे बड़ा निर्माण का कम चल रहा है अछा लगता है पर २ साल पहले यहाँ हरे भरे खेत थे जहाँ आज ऊँची इमारते हैं . उन इमार्तोने के सिस्शे से जब भी मैं बहार देखता हूँ मुझे सडको दीवारों पे धरती के अंशु दीखते हैं बड़ी अजीब बात है ये मेरे साथ क्यूँ होता है .आज मेरे पोड्स में शांति है सायद वो लोग कहीं गए हैं होली मानाने पर जब वो जा रहे थे तो उनके चेरे पे मुझे कुशी नहीं देखि लगा जैसे मनो वो कोई कम से जा रहे हो न कोई पर्व हो...
हैं तो मैं उस खिरकी पैर था ..पता है मुझे क्यूँ लगता है ये स्वर्ग नरक कुछ हैं हिन् नहीं आत्मा और ये भगवान सायद ये दुनियां के कुछ उन सुलझे पहलु हैं ,मुझे लगता है ये सभी इसी दुनियां में हैं किसी खिरकी के पीछे जिसके पार हमारी आंखे नहीं देख सकती हैं..
पर सायद वो भी खिरकी पार नहीं देख सकते हैं
यानि कुछ हैं हिन् नहीं बस एक कल्पना एक छह के सवारे ये दुनियां चल रही है .
मैं यहाँ अप लोग्से जब जुदा तो कुछ आचे लोगों से जन पहचान बाते हुई जो एक अछा
था पर क्यूँ मुझे ऐसा लगता है की सब एक अजीब से kashmashat में जी रहे हैं ...सायद वो हसने की एक नाकाम कोशिश है.....
हैं तो मैं उस खिरकी पैर था ..पता है मुझे क्यूँ लगता है ये स्वर्ग नरक कुछ हैं हिन् नहीं आत्मा और ये भगवान सायद ये दुनियां के कुछ उन सुलझे पहलु हैं ,मुझे लगता है ये सभी इसी दुनियां में हैं किसी खिरकी के पीछे जिसके पार हमारी आंखे नहीं देख सकती हैं..
पर सायद वो भी खिरकी पार नहीं देख सकते हैं
यानि कुछ हैं हिन् नहीं बस एक कल्पना एक छह के सवारे ये दुनियां चल रही है .
मैं यहाँ अप लोग्से जब जुदा तो कुछ आचे लोगों से जन पहचान बाते हुई जो एक अछा
था पर क्यूँ मुझे ऐसा लगता है की सब एक अजीब से kashmashat में जी रहे हैं ...सायद वो हसने की एक नाकाम कोशिश है.....
Wednesday, March 24, 2010
जिन्दगी.....
मृत्यु के पार एक सत्य है जो अनकही उन्सुल्झी अप्रत्यच अनजान खामोश सांत विश्मय्कारी कभी रौशनी कभी अँधेरा कभी कमोश तो कभी एक शोर पर इन सबसे परे एक जिन्दगी है चंचल हंसती गुनगुनाती तन्हाई में अपनों की याद दिलाती अछी प्यारी ,जीवन के एक पहलू सी अपने आप से सिमटती जिन्दगी ,
पर तभी मृत्यु की एहाश कराती जिन्दगी अपनों से अलग करती जिन्दगी दर्द में तड़प दिअलती जिन्दगी बिछरों की याद दिलाती जिन्दगी आंशु में हंशी को मिलाती जिन्दगी ,एक सच उन्सुल्झी अदभूत सी गुनगुनाती जिन्दगी..
मृत्यु के पार एक सत्य है जो अनकही उन्सुल्झी अप्रत्यच अनजान खामोश सांत विश्मय्कारी कभी रौशनी कभी अँधेरा कभी कमोश तो कभी एक शोर पर इन सबसे परे एक जिन्दगी है चंचल हंसती गुनगुनाती तन्हाई में अपनों की याद दिलाती अछी प्यारी ,जीवन के एक पहलू सी अपने आप से सिमटती जिन्दगी ,
पर तभी मृत्यु की एहाश कराती जिन्दगी अपनों से अलग करती जिन्दगी दर्द में तड़प दिअलती जिन्दगी बिछरों की याद दिलाती जिन्दगी आंशु में हंशी को मिलाती जिन्दगी ,एक सच उन्सुल्झी अदभूत सी गुनगुनाती जिन्दगी..
Monday, March 22, 2010
अब कुछ दिन और फिर ये शोर एक कमोशी कई अनसुलझे सवालों को दिल में दबाकर हम बहूत दूर चलेजायेंगे कितनी दूर ये मैं और आप नहीं जानते हैं फिर दुरी बढती हिन् जाएगी सरे मिलने के वादे सपने सब दब जायेंगे और हम सब दूर बहूत दूर हो जायेंगे अपनों से आप लोगों से ...बस यद् आयेंगी ये पल ये राते और एक मुस्कान ...और फिर वही जिंदगी की दौर ...मैं इन पलों को अपने इन आँखों में कैद कर के बहूत दूर सबसे दूर अपने आप से दूर हो जायूँगा बस यह याद रखना की लास्ट बेंच पैर कोई बैठता था
Saturday, March 13, 2010
Window.........
Window ?
Every day when I saw the glass of window I think whats the need of this window why not we we make a home without window .
at that time i m thinking to construct a house without window ...but suddenly I think there must be some reason to create window ...
My friend says for escaping ,wind ,light and view ..... ...but for what then why not we put gate inside the window no answer ...might be he is right or wrong ..but whats the need for window
Then suddenly ,,ohhh I cant believe it ...yes I got the answer
my friend is right ...
Wind a symbol of free thought ...window say open u r mind let bring some gud thought inside u r body
Light ..a symbol of shine growth ...window say open u r soul let combine to eternal god and feel them...
View ..change u r attitude so bring purity and try to differentiate u r self between right or wrong..
We must open our window to adopt changes other wise we pollute ourself and society too..
so ,its a time to open our window...
Every day when I saw the glass of window I think whats the need of this window why not we we make a home without window .
at that time i m thinking to construct a house without window ...but suddenly I think there must be some reason to create window ...
My friend says for escaping ,wind ,light and view ..... ...but for what then why not we put gate inside the window no answer ...might be he is right or wrong ..but whats the need for window
Then suddenly ,,ohhh I cant believe it ...yes I got the answer
my friend is right ...
Wind a symbol of free thought ...window say open u r mind let bring some gud thought inside u r body
Light ..a symbol of shine growth ...window say open u r soul let combine to eternal god and feel them...
View ..change u r attitude so bring purity and try to differentiate u r self between right or wrong..
We must open our window to adopt changes other wise we pollute ourself and society too..
so ,its a time to open our window...
Accept the Unexpected
When we least expect it , life sets us a challenge to test our courage and willingness to change . At such moment ,there is no point in pretending that nothing has happened . The challenge will not wait .Life does not look back .A week is more than enough for us to decide whether or not to accept our destiny..
Wednesday, March 10, 2010
BRAHAM
aaj aam manush bada ajib si jindgi ji raha hai ghutan ,jalan,dwesh...jaise lagta hai mano ko jakdan ho sarir me ..is comm me kuch dino se jis tarah bat hota hai yahin nahi almost 100 comm jisme main kabhi kabhr jata hun charo aur mar kat ..kya humlog is kapnik duniyan aur isejude log per hum gussa nikalte hain
chae wo ladki ka majak udana ya kisi ladk eper badi ajib si kiuntha chal rahi hai logo ke dimag me kuch samahj me nahi ata hai kyun kis liyea...
sayd koi jawab mere pass bhi nahi..per hum itne karib aur itni karwahat kyun..main ye nahi bolta main isse alag hun main khud iska hissa hun..is ghutan ka is bechani ka ...
main jab gher ata hun to wahi white diwar wahi desk wahi sabkuch ..jaise lagta ho mano ek diwal dusre diwal ko samne khada dekh hans raha ho.mere us diwar me kya anter wo bhi shant sthir main bhi ...bus puri rat meri angluyian bolti hai jiski dhwani main sun sakta hun..
hum ye kaise braham me ji rahe hain sayd ye humare soch se pare hai..
chae wo ladki ka majak udana ya kisi ladk eper badi ajib si kiuntha chal rahi hai logo ke dimag me kuch samahj me nahi ata hai kyun kis liyea...
sayd koi jawab mere pass bhi nahi..per hum itne karib aur itni karwahat kyun..main ye nahi bolta main isse alag hun main khud iska hissa hun..is ghutan ka is bechani ka ...
main jab gher ata hun to wahi white diwar wahi desk wahi sabkuch ..jaise lagta ho mano ek diwal dusre diwal ko samne khada dekh hans raha ho.mere us diwar me kya anter wo bhi shant sthir main bhi ...bus puri rat meri angluyian bolti hai jiski dhwani main sun sakta hun..
hum ye kaise braham me ji rahe hain sayd ye humare soch se pare hai..
Saturday, March 6, 2010
Monday, March 1, 2010
babhra ki yad me
अब की होली बभ्रा बिन तर्शे नयन
गलियां सुनी सजन बिन
सोचा वो आएंगे
चना साथ लायेंगे
जिसे बनायुंगी बभ्रा
पर ना वो ए ना मणि होली
भीर से भरी गलियां लगी अज्ज सुनी
बभ्रा तुम बिन अबकी बरी सुनी लगी होली
गलियां सुनी सजन बिन
सोचा वो आएंगे
चना साथ लायेंगे
जिसे बनायुंगी बभ्रा
पर ना वो ए ना मणि होली
भीर से भरी गलियां लगी अज्ज सुनी
बभ्रा तुम बिन अबकी बरी सुनी लगी होली
Sunday, February 28, 2010
last breath
From those around I hear a Cry,
A muffled sob, a Hopeless sigh,
I hear their footsteps leaving slow,
And then I know my soul must Fly!
A chilly wind begins to blow,
Within my soul, from Head to Toe,
And then, Last Breath escapes my lips,
It's Time to leave. And I must Go!
So, it is True (But it's too Late)
They said: Each soul has its Given Date,
When it must leave its body's core,
And meet with its Eternal Fate.
Oh mark the words that I do say,
Who knows? Tomorrow could be your Day,
At last, it comes to Heaven or Hell
Decide which now, Do NOT delay!
Come on my brothers let us pray
Decide which now, Do NOT delay!
Oh God! Oh God! I cannot see!
My eyes are Blind! Am I still Me
Or has my soul been led astray,
And forced to pay a Priceless Fee
Alas to Dust we all return,
Some shall rejoice, while others burn,
If only I knew that before
The line grew short, and came my Turn!
And now, as beneath the sod
They lay me (with my record flawed),
They cry, not knowing I cry worse,
For, they go home, I face my God!
Oh mark the words that I do say,
Who knows, Tomorrow could be your Day,
At last, it comes to Heaven or Hell
Decide which now, Do NOT delay !
Come on my brothers let's pray
Decide which now, do not delay ....
A muffled sob, a Hopeless sigh,
I hear their footsteps leaving slow,
And then I know my soul must Fly!
A chilly wind begins to blow,
Within my soul, from Head to Toe,
And then, Last Breath escapes my lips,
It's Time to leave. And I must Go!
So, it is True (But it's too Late)
They said: Each soul has its Given Date,
When it must leave its body's core,
And meet with its Eternal Fate.
Oh mark the words that I do say,
Who knows? Tomorrow could be your Day,
At last, it comes to Heaven or Hell
Decide which now, Do NOT delay!
Come on my brothers let us pray
Decide which now, Do NOT delay!
Oh God! Oh God! I cannot see!
My eyes are Blind! Am I still Me
Or has my soul been led astray,
And forced to pay a Priceless Fee
Alas to Dust we all return,
Some shall rejoice, while others burn,
If only I knew that before
The line grew short, and came my Turn!
And now, as beneath the sod
They lay me (with my record flawed),
They cry, not knowing I cry worse,
For, they go home, I face my God!
Oh mark the words that I do say,
Who knows, Tomorrow could be your Day,
At last, it comes to Heaven or Hell
Decide which now, Do NOT delay !
Come on my brothers let's pray
Decide which now, do not delay ....
होली
न बजती बाँसुरी कोई न खनके पांव की पायल
न खेतों में लहरता है किसी का टेसुआ आँचल्
न कलियां हैं उमंगों की, औ खाली आज झोली है
मगर फिर भी दिलासा है ये दिल को, आज होली है
हरे नीले गुलाबी कत्थई सब रंग हैं फीके
न मटकी है दही वाली न माखन के कहीं छींके
लपेटे खिन्नियों का आवरण, मिलती निबोली है
मगर फिर भी दिलासा है ये दिल को आज होली है
अलावों पर नहीं भुनते चने के तोतई बूटे
सुनहरे रंग बाली के कहीं खलिहान में छूटे
न ही दरवेश ने कोई कहानी आज बोली है
मगर फिर भी दिलासा है ये दिल को, आज होली है
न गेरू से रंगी पौली, न आटे से पुरा आँगन
पता भी चल नहीं पाया कि कब था आ गया फागुन
न देवर की चुहल है , न ही भाभी की ठिठोली है
मगर फिर भी दिलासा है ये दिल को आज होली है
न कीकर है, न उन पर सूत बांधें उंगलियां कोई
न नौराते के पूजन को किसी ने बालियां बोईं
न अक्षत देहरी बिखरे, न चौखट पर ही रोली है
मगर फिर भी दिलासा है ये दिल को, आज होली है
न ढोलक न मजीरे हैं न तालें हैं मॄदंगों की
न ही दालान से उठती कही भी थाप चंगों की
न रसिये गा रही दिखती कहीं पर कोई टोली है
मगर फिर भी दिलासा है ये दिल को आज होली है
न कालिंदी की लहरें हैं न कुंजों की सघन छाया
सुनाई दे नहीं पाता किसी ने फाग हो गाया
न शिव बूटी किसी ने आज ठंडाई में घोली है
मगर फिर भी दिलासा है ये दिल को आज होली है
न खेतों में लहरता है किसी का टेसुआ आँचल्
न कलियां हैं उमंगों की, औ खाली आज झोली है
मगर फिर भी दिलासा है ये दिल को, आज होली है
हरे नीले गुलाबी कत्थई सब रंग हैं फीके
न मटकी है दही वाली न माखन के कहीं छींके
लपेटे खिन्नियों का आवरण, मिलती निबोली है
मगर फिर भी दिलासा है ये दिल को आज होली है
अलावों पर नहीं भुनते चने के तोतई बूटे
सुनहरे रंग बाली के कहीं खलिहान में छूटे
न ही दरवेश ने कोई कहानी आज बोली है
मगर फिर भी दिलासा है ये दिल को, आज होली है
न गेरू से रंगी पौली, न आटे से पुरा आँगन
पता भी चल नहीं पाया कि कब था आ गया फागुन
न देवर की चुहल है , न ही भाभी की ठिठोली है
मगर फिर भी दिलासा है ये दिल को आज होली है
न कीकर है, न उन पर सूत बांधें उंगलियां कोई
न नौराते के पूजन को किसी ने बालियां बोईं
न अक्षत देहरी बिखरे, न चौखट पर ही रोली है
मगर फिर भी दिलासा है ये दिल को, आज होली है
न ढोलक न मजीरे हैं न तालें हैं मॄदंगों की
न ही दालान से उठती कही भी थाप चंगों की
न रसिये गा रही दिखती कहीं पर कोई टोली है
मगर फिर भी दिलासा है ये दिल को आज होली है
न कालिंदी की लहरें हैं न कुंजों की सघन छाया
सुनाई दे नहीं पाता किसी ने फाग हो गाया
न शिव बूटी किसी ने आज ठंडाई में घोली है
मगर फिर भी दिलासा है ये दिल को आज होली है
Friday, February 19, 2010
Thursday, February 18, 2010
sawalon ki kashmshat hai
bechan sanso ki tadpadhat hai
andher me bichron ko khojne ki sugbughat hai
per dekho to charo aur bus ek sawal hai....
khud ko khud se khojta insan
bhir me bhir ko katta insan
sanso se sanso ko chinta insan
khun ki holi khelata insan
takdeer se jhujhta insan
ajj sawalon ke dher pe khara insan
khuda se khuda ki wajood puchta insan...
kya ye jindgi ek sawal hai?
first | < previous | next > | last
bechan sanso ki tadpadhat hai
andher me bichron ko khojne ki sugbughat hai
per dekho to charo aur bus ek sawal hai....
khud ko khud se khojta insan
bhir me bhir ko katta insan
sanso se sanso ko chinta insan
khun ki holi khelata insan
takdeer se jhujhta insan
ajj sawalon ke dher pe khara insan
khuda se khuda ki wajood puchta insan...
kya ye jindgi ek sawal hai?
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kash in rato ki koi subah to hoti
kash in jakhmo ki koi dawa to hoti
khun se ranjti dhara pe Anshu ki ek bund to hoti
bichro ko dubara dekhne ki ek ash to hoti
kash in raton ki koi subah to hoti...
Apno ko akhir alwida kehne ki ash to hoti
jism rakh hone se pehle unse ek mulakat to hoti
takdeer ki kinchi lakeron ko badlne ki ek chah to hoti
tute sapno ko jodne ki khoshish to hoti
in andhere rasto per chalne ke liye koi sath to hoti
kash in raton ki koi subah to hoti
kash us bandhan ko tutne ki koi wajah to hoti
kash .......kash main akhri bar unko kuch to bol pata ....
kashhhhhhhh...kashhhhhh....kash...
kash in jakhmo ki koi dawa to hoti
khun se ranjti dhara pe Anshu ki ek bund to hoti
bichro ko dubara dekhne ki ek ash to hoti
kash in raton ki koi subah to hoti...
Apno ko akhir alwida kehne ki ash to hoti
jism rakh hone se pehle unse ek mulakat to hoti
takdeer ki kinchi lakeron ko badlne ki ek chah to hoti
tute sapno ko jodne ki khoshish to hoti
in andhere rasto per chalne ke liye koi sath to hoti
kash in raton ki koi subah to hoti
kash us bandhan ko tutne ki koi wajah to hoti
kash .......kash main akhri bar unko kuch to bol pata ....
kashhhhhhhh...kashhhhhh....kash...
Tuesday, February 16, 2010
gore rang pe wo marte hain
jinhe rango se pyar hota hai
chera ki khubsurti pe wo marte hain
jinhe us khoobsurti se hin bus pyar hota hai
Talash karne wala na rang na khubsurti khojta hai
wo chahta hai bus koi apna
wo dekhta hai bus ek hin sapna
ki koi ho jo jo sirf ho uska apna
per logo ne sada is pyar ko galat samjha hai
her sapno ko subah ke ujalon me chipaya hai
per kuch ankhe sapne nahi dekhte
kuch labj ajj bhi thame rehte hain
kyunki unki pyar ko humesa
unki kamjori samjha jata hai.......
aur un ankho ko bus
aur bus .................................................................................
jinhe rango se pyar hota hai
chera ki khubsurti pe wo marte hain
jinhe us khoobsurti se hin bus pyar hota hai
Talash karne wala na rang na khubsurti khojta hai
wo chahta hai bus koi apna
wo dekhta hai bus ek hin sapna
ki koi ho jo jo sirf ho uska apna
per logo ne sada is pyar ko galat samjha hai
her sapno ko subah ke ujalon me chipaya hai
per kuch ankhe sapne nahi dekhte
kuch labj ajj bhi thame rehte hain
kyunki unki pyar ko humesa
unki kamjori samjha jata hai.......
aur un ankho ko bus
aur bus .................................................................................
Saturday, February 13, 2010
log to kehte hain chand me bhi dah hai
surj me bhi agg hai
dekhna hai to upne under ke bhagwan ko dekho
uski khubsurti ko pehchano
.......................
Dekhna hai to ganga ko dekho
dekhna hai to bharat ko dekho iske dil ko dekho
.......................alwida ..kehne se pehle us insan ki ankhon me dekho
jindgi ke her jugre pal me sadiyon ki ehas ko dekho....
dekhan hai to ek garib ke dil ko dekho
uske ankhon ki nami ko dekho...
surj me bhi agg hai
dekhna hai to upne under ke bhagwan ko dekho
uski khubsurti ko pehchano
.......................
Dekhna hai to ganga ko dekho
dekhna hai to bharat ko dekho iske dil ko dekho
.......................alwida ..kehne se pehle us insan ki ankhon me dekho
jindgi ke her jugre pal me sadiyon ki ehas ko dekho....
dekhan hai to ek garib ke dil ko dekho
uske ankhon ki nami ko dekho...
shyad hain shyad na
"Kal hum kya mil payenge
shyad na shyad hain
badi ajib bat hai....hume bichre to barson bitgyae
per kya wo jagh ajj bhi wais ahai jaisa pahle tha
shyad hain shyad na...
kya tum aj bhi waisi ho jaisi pahli thi
shyad hain shyad na
badi ajib bat hai...kal duniya prem batenge aur hum yahan
is wirane me ye sochenge ki tum aaj bhi waisi ho
shyad hain shyad na
wo akhri alwida kya tumhe yad hai
shyad hain shyad na
shyad hain shyad na
shyad hain shyad na
shyad hain shyad na
ye thi ek choti prem kahani
shyad hain shyad na
shyad na shyad hain
badi ajib bat hai....hume bichre to barson bitgyae
per kya wo jagh ajj bhi wais ahai jaisa pahle tha
shyad hain shyad na...
kya tum aj bhi waisi ho jaisi pahli thi
shyad hain shyad na
badi ajib bat hai...kal duniya prem batenge aur hum yahan
is wirane me ye sochenge ki tum aaj bhi waisi ho
shyad hain shyad na
wo akhri alwida kya tumhe yad hai
shyad hain shyad na
shyad hain shyad na
shyad hain shyad na
shyad hain shyad na
ye thi ek choti prem kahani
shyad hain shyad na
Thursday, February 4, 2010
dheere dheere jalaa main
sawan ki barish me shardi ki sit me jala
patjahr ki tapish me
rat ke andher me badha
per ujala abhi aur dur hai
Manjil abhi muskil hai
Mit ki yad me dheere dheere jalaa main
Per bulandi ki manji ab aur dur nahi
tan ki tapish ab aur nahi
Jindgi ki daur aur nahi
hasraton ki sidhi aur nahi
Bus sukun chyiea
jiski khoj me dheere dheere jalaa main
main aur jala aur jala ye awarapan
jala ye pagal pan
ab sukun chyiea ..
sawan ki barish me shardi ki sit me jala
patjahr ki tapish me
rat ke andher me badha
per ujala abhi aur dur hai
Manjil abhi muskil hai
Mit ki yad me dheere dheere jalaa main
Per bulandi ki manji ab aur dur nahi
tan ki tapish ab aur nahi
Jindgi ki daur aur nahi
hasraton ki sidhi aur nahi
Bus sukun chyiea
jiski khoj me dheere dheere jalaa main
main aur jala aur jala ye awarapan
jala ye pagal pan
ab sukun chyiea ..
Wednesday, January 27, 2010
ek cchan..........mera jivan.
आज उनकी यादों के दर्द से निअक्लने को बैचन हूँ
अपनों को आज फिर मैं अपने आप से निकालने को बैचन हूँ
सोस्चता हूँ फिर से उस गली से जिन्दगी को खोजने को तय्यार हूँ
पर वो एहसाश उस उनुभुती को कहाँ से लायुं जो जला आया हूँ
वो बचपन कहाँ से लायुं जिसे छोर किसी के गोद में आया हूँ
सहारा के लिए आज भी कई हाँथ हैं पर अपने बाप का हाँथ कहाँ से लायुं
छोर आया हूँ आज बहुत कुछ पर किसी अपनों को भूलने की एक एहसाह साथ लाया हूँ
आज भी मैं रोता हूँपर ये सूखे आंशु इन चहेरों में चुप जाते हैं
आज फिर मैं गुम होता हूँ उस भीर में
एक आखरी कोशिश किसी अपनों की तलाश में.
अपनों को आज फिर मैं अपने आप से निकालने को बैचन हूँ
सोस्चता हूँ फिर से उस गली से जिन्दगी को खोजने को तय्यार हूँ
पर वो एहसाश उस उनुभुती को कहाँ से लायुं जो जला आया हूँ
वो बचपन कहाँ से लायुं जिसे छोर किसी के गोद में आया हूँ
सहारा के लिए आज भी कई हाँथ हैं पर अपने बाप का हाँथ कहाँ से लायुं
छोर आया हूँ आज बहुत कुछ पर किसी अपनों को भूलने की एक एहसाह साथ लाया हूँ
आज भी मैं रोता हूँपर ये सूखे आंशु इन चहेरों में चुप जाते हैं
आज फिर मैं गुम होता हूँ उस भीर में
एक आखरी कोशिश किसी अपनों की तलाश में.
Monday, January 4, 2010
Koi aankhon aankhon se baat kar leta hai
Koi aankhon aankhon mein mulakaat kar leta hai
Bada Mushkil hota hai tab Jawab denA
Jab koi KhamosH rehkar Sawaal kar leta hai
Koi aankhon aankhon mein mulakaat kar leta hai
Bada Mushkil hota hai tab Jawab denA
Jab koi KhamosH rehkar Sawaal kar leta hai
Rone se gham-e-dil ka guzara nahi hota,
har shakhs zindagi ka sahara nahi hota.
Us roz to lagta hai bekaar jiye hum,
jis roz kabhi zikr tumhara nahi hota
har shakhs zindagi ka sahara nahi hota.
Us roz to lagta hai bekaar jiye hum,
jis roz kabhi zikr tumhara nahi hota
Bhar aayi wo aankhen jo mera naam aaya,
Ishq naakaam hi sahi, fir bhi bahut kaam aaya...
humne Ishq mein aisi bhi guzari hain raatein....
Jab tak aansu na bahe, dil ko na aaraam aaya....
Ishq naakaam hi sahi, fir bhi bahut kaam aaya...
humne Ishq mein aisi bhi guzari hain raatein....
Jab tak aansu na bahe, dil ko na aaraam aaya....
December kay maheenay ka
WOh shayad akhri din tha
Baras guzray kayii
Main nay "mOhabbat" lafz likha tha
KOi kaghaz k tukray par
Achanak yaad aya hai
Mujh kO kisi say baat karni thi
Ussay kehna tha
Jan-e-jaan
"mujhay tum say mOhabbat hai"
Magar main keh nahi payi
WOh kaghaz aj tak
Lipta para hai dhOOl main lekin
Kisi kO day nahi payi
DObara chah kar bhi main
MOHABBAT KAR NAHI PAYi !
WOh shayad akhri din tha
Baras guzray kayii
Main nay "mOhabbat" lafz likha tha
KOi kaghaz k tukray par
Achanak yaad aya hai
Mujh kO kisi say baat karni thi
Ussay kehna tha
Jan-e-jaan
"mujhay tum say mOhabbat hai"
Magar main keh nahi payi
WOh kaghaz aj tak
Lipta para hai dhOOl main lekin
Kisi kO day nahi payi
DObara chah kar bhi main
MOHABBAT KAR NAHI PAYi !
Yadon Sey Rishta Kal Bhi Tha,Yadon Sey Rishta Aaj Bhi Hai
Dil Kal Bhi Apna Dukhta Tha,Dil dukh raha Aaj Bhi Hai
Tum Door Huye Majboori Mein,Hum Toot Gaye Is Doori Mein
Kabhi Waqt Miley Tu Lout Aana,Ye Dil tadapta Aaj Bhi Hai
Tum Khush Ruho Abaad Ruho, Dil Apna To Barbaad Hua
Gham Dil Ka Sahara Kal Bhi Tha,Aur Gham Ka Mara Aaj Bhi Hai
Yeh Ashk Nahi Hain Aankhon Mein,Ye Taarey Jhilmil Kartey Hain
In Ankhon Mein Jo Kal Tak Tha,Vohi Chaand Sa Chehra Aaj Bhi Hai
Ab Shikwa Kisi Se Kya Karna,Taqdeer Mein Jo Likha Tha Mila..
Dil Kal Bhi Apna Dukhta Tha,Dil dukh raha Aaj Bhi Hai
Tum Door Huye Majboori Mein,Hum Toot Gaye Is Doori Mein
Kabhi Waqt Miley Tu Lout Aana,Ye Dil tadapta Aaj Bhi Hai
Tum Khush Ruho Abaad Ruho, Dil Apna To Barbaad Hua
Gham Dil Ka Sahara Kal Bhi Tha,Aur Gham Ka Mara Aaj Bhi Hai
Yeh Ashk Nahi Hain Aankhon Mein,Ye Taarey Jhilmil Kartey Hain
In Ankhon Mein Jo Kal Tak Tha,Vohi Chaand Sa Chehra Aaj Bhi Hai
Ab Shikwa Kisi Se Kya Karna,Taqdeer Mein Jo Likha Tha Mila..
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