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sidhanth
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Thursday, February 18, 2010
मेरी माँ!
मेरी माँ!
आज भी निकालती है-
शगुन के चावल,
(भीख के राशन से)
आज भी चींटियों को आटा डालते हुए
मेरी सलामती की दुआ करती है!
आज भी
बसता है उसका बेटा
उसके साथ
उस आश्रम में!!
जहाँ छोड़ आया था मैं
उसे बरसों पहले!!
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