मैं युग परिवर्तन का हुंकार करने आया हूँ
पर अपनों को हीं यहाँ डरा पाया हूँ
आज भी जाती के नाम पर कटी धरा है
शोषित आज भी शोषित है
शोषण करता आज भी मुस्कुराता है
भूमि हीरों के हार के सामान गले में चमकती है
पर एक किसान से पूछो वो इसको क्या समझती है ..
मैं आया था जनमानस को जगाने
एक भिसन हुंकार करने
पर इनको सोपुं ये डोर जो खुद से हैं कटे
और खुद को बापू के पुत्र हैं कहते
है विधाता इन्सान नहीं तो फिर
क्यूँ चढ़ बैठा है तू दूसरों की जिन्दगी पर
बदलाव की आग जला वरना इस ठण्ड में तो
तू मरेगा हीं...
जय श्री राम
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