sidhanth

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Wednesday, March 24, 2010

जिन्दगी.....
मृत्यु के पार एक सत्य है जो अनकही उन्सुल्झी अप्रत्यच अनजान खामोश सांत विश्मय्कारी कभी रौशनी कभी अँधेरा कभी कमोश तो कभी एक शोर पर इन सबसे परे एक जिन्दगी है चंचल हंसती गुनगुनाती तन्हाई में अपनों की याद दिलाती अछी प्यारी ,जीवन के एक पहलू सी अपने आप से सिमटती जिन्दगी ,
पर तभी मृत्यु की एहाश कराती जिन्दगी अपनों से अलग करती जिन्दगी दर्द में तड़प दिअलती जिन्दगी बिछरों की याद दिलाती जिन्दगी आंशु में हंशी को मिलाती जिन्दगी ,एक सच उन्सुल्झी अदभूत सी गुनगुनाती जिन्दगी..

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