sidhanth

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Monday, March 22, 2010

अब कुछ दिन और फिर ये शोर एक कमोशी कई अनसुलझे सवालों को दिल में दबाकर हम बहूत दूर चलेजायेंगे कितनी दूर ये मैं और आप नहीं जानते हैं फिर दुरी बढती हिन् जाएगी सरे मिलने के वादे सपने सब दब जायेंगे और हम सब दूर बहूत दूर हो जायेंगे अपनों से आप लोगों से ...बस यद् आयेंगी ये पल ये राते और एक मुस्कान ...और फिर वही जिंदगी की दौर ...मैं इन पलों को अपने इन आँखों में कैद कर के बहूत दूर सबसे दूर अपने आप से दूर हो जायूँगा बस यह याद रखना की लास्ट बेंच पैर कोई बैठता था

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