sidhanth

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Sunday, April 4, 2010

अब थक गया हूँ
थोरी देर रुकना चाहता हूँ
सुबह की धुप से झुलसे बदन के
लिए एक चाह चाहता हूँ
अपनी माँ के आंचल में थोरा
सोना चाहता हूँ
दो साल होगये उन गलियों में
गए हुए एक बार वो खोया बचपन चाहता हूँ
अपनी माँ के आंचल में थोरा
सोना चाहता हूँ,
दादी की वो कहानी
चाहेरा की झुरिओं में खोयी यादों
की शीलवत में झांकती मेरे बचपन के दिन
चाहता हूँ
महानगरों की धुप में अपनों को
खोजता हूँ
बर्षों की दुरिओं को मिटने को बेताब दिल को रोकता हूँ
कल सुबह फिर एक कोशिश अपनी
जिन्दगी को खोजने की
सूखते होटों में जवानी को जलाना चाहता हूँ
अपनी माँ के आंचल में थोरा
सोना चाहता हूँ

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