sidhanth
 
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Monday, December 3, 2012
अभी लंगड़े की दौड़ बाकि है
अभी लंगड़े की दौड़ बाकि है ...
अभी रेस ख़तम नहीं हुई है ..
अभी बिगुल नहीं बजा है ...
अभी गिरकर फीर उठाना बाकि है ...
अभी लंगड़े की दौड़ बाकि है ..
अभी ज़ख्मो से बहते रक्त ने भूमि को रंग नहीं है ...
अभी जीत की सफ़ेद पट्टी टंगी है ..
अभी सूरज ढला नहीं है ..
अभी तालीयों का शोर रुका नहीं है ...
अभी लंगड़े की दौड़ बाकि है 
कल से लंगड़ा फीर दौड़ेगा 
जीत के लिए 
अपने अरमानो के लिए 
अपने सपनो के लिए
और तालियाँ बज रही हैं ....दौड़ जारी है ..
Sunday, December 2, 2012
तेरा ये भाई तेरे लिए
क्या कहूं कितने अरमान दिलो में दबा रखा है तेरा ये भाई तेरे लिए 
तुझे सायद पता नहीं है जब तू छोटी से थी मेरे नन्हे हनथो को पकड़ चलना सीखी 
वो मेरे हर बात में तेरा नुक्स खोजना 
मुझे आज भी याद है 
मुझे याद है बचपन के वो दिन तेरे जब मैं तुझे साइकिल पर बैठा स्कूल ले जाता था 
और तेरा कहना भाई तेज चला 
हर गह्दी से मैंने रचे लगाया 
की तुझे ऐसा न लगे की तेरा भाई 
कभी हारा हो ....
वो तेरी दो चोटियों को पकड़ खेलना 
वो मेरी एक रूपये का चाहत 
और वो तेरा हर घडी रूठना 
कभी गुब्बारे के लिए तो कभी गुड्डियों के लिए 
तुझे याद है जब बिना हवे की साइकिल पर भी तेरे को बैठा घुमाना 
मुझे याद हर वो कुछ जो पल गुजरे 
तुझे सायद याद नहीं की कितनी बार मैं गिरा हूँ 
तुझे रास्ते के ठोकर से बचाने को 
मैंने जिंदगी में कुछ पाया नहीं पर 
मैं तुझे जीतते देखना चाहता हूँ 
तू आज भी मेरे लिए मेरी बहन से जाएदा मेरी बेटी की तरह है 
तेरा भाई 
......
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