sidhanth
Tuesday, December 1, 2009
Sunday, November 1, 2009
ashutosh bhai ki kalam se
We know we are not alone
The nature ,the supernatural
Are always with us
Even then why it comes.....................
We always expect from others
And never look inside
Where all of our answers are
We were not yesterday
We will not be tomorrow
We know the eternal truth
World is a divine sport and we are mere it's characters
Even then why it comes.......................
We are the user of this body
We know this well
We are the light but why so much darkness inside
We should recognize the earthly illusions
World is going to change
We know tomorrow will be a new one
Even then why it comes.......................
We say we are the masters of ourselves
But always try to enslave others
Let us change ourselves instead of others
Let us be the master of ourselves
Let us do a new beginning
And try to become what we are
And never expect from others
So it may never come again , So it may never come again.
Saturday, October 31, 2009
इच्छाओं के समंदर
पर इन सनातन हवाओं, परम्पराओं ने
न जाने कैसा बनाया है हमें जो
करता है
सदैव तर्क
अच्छा बुरा, सही गलत
होती है हमें भी दुविधा से असुविधा
पर जब से सोचने-समझने का काम
शिराओं में दौड़ते खून ने लिया
दिमाग को जैसे जबरदस्ती वी आर एस दे दिया गया हो
अब तो काम करने से डरता है दिमाग
पिछली बार सोचने की कोशिश पर
कितना मारा था शिराओं के ख़ूनों ने उसे
भिगो-भिगो के पीटा था
शरीर के बीचो-बीच चौराहे पर
छुप के बैठा रहता है दिमाग अब तो
खोपड़ी के पिछले कोटर में
गुजरात के अल्पसंख्यकों की तरह
कोटर के चारो ओर अटखेलियाँ करते
शिरों के खून पसीना-पसीना कर जाते है उसे
जब तक आरती और अजानों की दुआ सलाम होती थी
जब तक मंदिर वाली गली के फूलों का
मजार पर चढ़ना मना नहीं था
जब तक ख़ुदा के महल में राम रहते थे
जब तक धुली जाती थी कबीर की चदरिया
सरयू के पानी में
तब तक कहा जाता था
आदमी सोचता है दिमाग से
करता और जीता है दिमाग से
दिल की बेकार बातों को टाल देता है यूँ ही
जैसे अपने देश का किसान
टाल देता है अपने बीवी की
अगले फगुआ पर लुग्गा लाने की बात
पर किसने बढ़ाई
शिराओं के ख़ून की हिम्मत
वही तो कहता था
भुजाओं से कड़कने को
नथुनों से फड़कने को
सोचता है दिमाग
क्यों कहा था शिराओं से
खूब भेजों हृदय को खून
ताकि साँस न फूले
गुम्बदों पर चढ़ने में
इक छोटी सी भूल पर
वनवास मिल गया दिमाग को
गर सोचने की कोशिश करता हुआ पकड़ा गया तो
दे देंगे अज्ञातवास शिराओं के ख़ून
काश ख़त्म हो जाते नज़र बंदी के दिन
पर इक नारे वाला बच कर निकला है
अंधे कानून को न जाने क्या दिखाकर
गर फिर उबाल ला दिया
शिराओं के खून में उसी ने
उम्र कैद न हो जाये मुझको।
शोर साँसों में समेटे
काँस वन में मैं दिवस का
अकेलापन हूँ
एक गाथा का समापन हूँ!
छुओगे तो
आइने-सा
झनझना कर टूट जाऊँगा
सेंदुरी मंगल कलश-सा
धार में ही फूट जाऊँगा
मैं हवाओं की त्वचा का
खुरदुरापन हूँ!
धूप बुनकर
अग्नि गाछों पर-
दहकता
दिशाओं में
तप्त चंदन-सा महकता
नाग-पाशों से बिंधा
घायल हरापन हूँ!
मंत्र जल-सा
आंजुरी में
मत मुझे बाँधों
हो सके तो
बाँसुरी में दर्द-सा साधो
छंद की आवृत्तियों में
मैं नयापन हूँ!
परिचय
परिचय
- रामधारी सिंह दिनकर (Ramdhari Singh Dinkar)
सलिल कण हूँ, या पारावार हूँ मैं
स्वयं छाया, स्वयं आधार हूँ मैं
बँधा हूँ, स्वपन हूँ, लघु वृत हूँ मैं
नहीं तो व्योम का विस्तार हूँ मैं
समाना चाहता है, जो बीन उर में
विकल उस शुन्य की झनंकार हूँ मैं
भटकता खोजता हूँ, ज्योति तम में
सुना है ज्योति का आगार हूँ मैं
जिसे निशि खोजती तारे जलाकर
उसीका कर रहा अभिसार हूँ मैं
जनम कर मर चुका सौ बार लेकिन
अगम का पा सका क्या पार हूँ मैं
कली की पंखडीं पर ओस-कण में
रंगीले स्वपन का संसार हूँ मैं
मुझे क्या आज ही या कल झरुँ मैं
सुमन हूँ, एक लघु उपहार हूँ मैं
मधुर जीवन हुआ कुछ प्राण! जब से
लगा ढोने व्यथा का भार हूँ मैं
रुंदन अनमोल धन कवि का, इसी से
पिरोता आँसुओं का हार हूँ मैं
मुझे क्या गर्व हो अपनी विभा का
चिता का धूलिकण हूँ, क्षार हूँ मैं
पता मेरा तुझे मिट्टी कहेगी
समा जिस्में चुका सौ बार हूँ मैं
न देंखे विश्व, पर मुझको घृणा से
मनुज हूँ, सृष्टि का श्रृंगार हूँ मैं
पुजारिन, धुलि से मुझको उठा ले
तुम्हारे देवता का हार हूँ मैं
सुनुँ क्या सिंधु, मैं गर्जन तुम्हारा
स्वयं युग-धर्म की हुँकार हूँ मैं
कठिन निर्घोष हूँ भीषण अशनि का
प्रलय-गांडीव की टंकार हूँ मैं
दबी सी आग हूँ भीषण क्षुधा का
दलित का मौन हाहाकार हूँ मैं
सजग संसार, तू निज को सम्हाले
प्रलय का क्षुब्ध पारावार हूँ मैं
बंधा तुफान हूँ, चलना मना है
बँधी उद्याम निर्झर-धार हूँ मैं
कहूँ क्या कौन हूँ, क्या आग मेरी
बँधी है लेखनी, लाचार हूँ मैं ।
fierce poem by atal ji
हिन्दु तन मन हिन्दु जीवन रग रग हिन्दु मेरा परिचय॥
मै शंकर का वह क्रोधानल कर सकता जगती क्षार क्षार
डमरू की वह प्रलयध्वनि हूं जिसमे नचता भीषण संहार
रणचंडी की अतृप्त प्यास मै दुर्गा का उन्मत्त हास
मै यम की प्रलयंकर पुकार जलते मरघट का धुँवाधार
फिर अंतरतम की ज्वाला से जगती मे आग लगा दूं मै
यदि धधक उठे जल थल अंबर जड चेतन तो कैसा विस्मय
हिन्दु तन मन हिन्दु जीवन रग रग हिन्दु मेरा परिचय॥
मै आज पुरुष निर्भयता का वरदान लिये आया भूपर
पय पीकर सब मरते आए मै अमर हुवा लो विष पीकर
अधरोंकी प्यास बुझाई है मैने पीकर वह आग प्रखर
हो जाती दुनिया भस्मसात जिसको पल भर मे ही छूकर
भय से व्याकुल फिर दुनिया ने प्रारंभ किया मेरा पूजन
मै नर नारायण नीलकण्ठ बन गया न इसमे कुछ संशय
हिन्दु तन मन हिन्दु जीवन रग रग हिन्दु मेरा परिचय॥
मै अखिल विश्व का गुरु महान देता विद्या का अमर दान
मैने दिखलाया मुक्तिमार्ग मैने सिखलाया ब्रह्म ज्ञान
मेरे वेदों का ज्ञान अमर मेरे वेदों की ज्योति प्रखर
मानव के मन का अंधकार क्या कभी सामने सकठका सेहर
मेरा स्वर्णभ मे गेहर गेहेर सागर के जल मे चेहेर चेहेर
इस कोने से उस कोने तक कर सकता जगती सौरभ मै
हिन्दु तन मन हिन्दु जीवन रग रग हिन्दु मेरा परिचय॥
मै तेजःपुन्ज तम लीन जगत मे फैलाया मैने प्रकाश
जगती का रच करके विनाश कब चाहा है निज का विकास
शरणागत की रक्षा की है मैने अपना जीवन देकर
विश्वास नही यदि आता तो साक्षी है इतिहास अमर
यदि आज देहलि के खण्डहर सदियोंकी निद्रा से जगकर
गुंजार उठे उनके स्वर से हिन्दु की जय तो क्या विस्मय
हिन्दु तन मन हिन्दु जीवन रग रग हिन्दु मेरा परिचय॥
दुनिया के वीराने पथ पर जब जब नर ने खाई ठोकर
दो आँसू शेष बचा पाया जब जब मानव सब कुछ खोकर
मै आया तभि द्रवित होकर मै आया ज्ञान दीप लेकर
भूला भटका मानव पथ पर चल निकला सोते से जगकर
पथ के आवर्तोंसे थककर जो बैठ गया आधे पथ पर
उस नर को राह दिखाना ही मेरा सदैव का दृढनिश्चय
हिन्दु तन मन हिन्दु जीवन रग रग हिन्दु मेरा परिचय॥
मैने छाती का लहु पिला पाले विदेश के सुजित लाल
मुझको मानव मे भेद नही मेरा अन्तःस्थल वर विशाल
जग से ठुकराए लोगोंको लो मेरे घर का खुला द्वार
अपना सब कुछ हूं लुटा चुका पर अक्षय है धनागार
मेरा हीरा पाकर ज्योतित परकीयोंका वह राज मुकुट
यदि इन चरणों पर झुक जाए कल वह किरिट तो क्या विस्मय
हिन्दु तन मन हिन्दु जीवन रग रग हिन्दु मेरा परिचय॥
मै वीरपुत्र मेरि जननी के जगती मे जौहर अपार
अकबर के पुत्रोंसे पूछो क्या याद उन्हे मीना बझार
क्या याद उन्हे चित्तोड दुर्ग मे जलनेवाली आग प्रखर
जब हाय सहस्त्रो माताए तिल तिल कर जल कर हो गई अमर
वह बुझनेवाली आग नही रग रग मे उसे समाए हूं
यदि कभि अचानक फूट पडे विप्लव लेकर तो क्या विस्मय
हिन्दु तन मन हिन्दु जीवन रग रग हिन्दु मेरा परिचय॥
होकर स्वतन्त्र मैने कब चाहा है कर लूं सब को गुलाम
मैने तो सदा सिखाया है करना अपने मन को गुलाम
गोपाल राम के नामोंपर कब मैने अत्याचार किया
कब दुनिया को हिन्दु करने घर घर मे नरसंहार किया
कोई बतलाए काबुल मे जाकर कितनी मस्जिद तोडी
भूभाग नही शत शत मानव के हृदय जीतने का निश्चय
हिन्दु तन मन हिन्दु जीवन रग रग हिन्दु मेरा परिचय॥
मै एक बिन्दु परिपूर्ण सिन्धु है यह मेरा हिन्दु समाज
मेरा इसका संबन्ध अमर मै व्यक्ति और यह है समाज
इससे मैने पाया तन मन इससे मैने पाया जीवन
मेरा तो बस कर्तव्य यही कर दू सब कुछ इसके अर्पण
मै तो समाज की थाति हूं मै तो समाज का हूं सेवक
मै तो समष्टि के लिए व्यष्टि का कर सकता बलिदान अभय
हिन्दु तन मन हिन्दु जीवन रग रग हिन्दु मेरा परिचय॥
Wednesday, October 28, 2009
zinda movie song
yeh hai meri kahani
khamosh zindagani
sannata keh raha hai
kyun zulm seh raha hai
ek dastaan purani
tanhayi ki zubani
her zakham khil raha hai
kuch mujh se keh raha hai
chubtay kantay yadoon ke daaman say chunta hoon
girti deewaron ke aanchal mai zinda hoon
bass yeh meri kahani
benishaan nishaani
ek darr beh raha hai
kuch mujh se keh raha hai
chubtay kaanten yadoon ke daaman se chunta hoon
girti deewaron ke aanchal mein zinda hoon
(john' s Part)..
bajay pyaar ki shabnum mere gulistaan mein
baraste rehte hain har simt maut ke saye
siyahiyon se ulajh padti hain meri aankhein
koi nahi .. koi bhi nahi jo batlaye
kitni der ujalon ki raah dekhe
koi nahi hai koi bhi nahi
na pass na durr
yeh pyaar hai
dil ki dharkan
apni chahat ka jo ellan kiye jaati hai
zindagi hai jo jiye jaati hai
khoon k ghoont peay jaati hai
khwaab aankhon se siye jaati hai
ab na koi paas hai
phir bhi ehsaas hai
yahiaon mai uljhi padi
jeene ki ek aas hai
yadoon ka jungle yeh dil
kaanton se jal thal yeh dil
chubtay kaanten yadoon ke daaman se chunta hoon
girti deewaron ke aanchal mein zinda hoon
Tuesday, October 27, 2009
Time to Buy a house.....
It looks like the U.S. housing sector has bottomed. In fact, if you’ve been thinking about buying a house, this may be the time to make your move.
Let me tell you why.
Congress and the Obama administration are considering whether to extend the $8,000 first-time-buyer tax credit for another year from Nov. 30, when it expires. With cheap money, housing may show strength in the short term, just as we’ve seen with other assets. But there is the potential for a market hiccup next year or in 2011.When the National Association of Homebuilders released its NAHB Index for October last week, it showed a drop of one point in homebuilders’ view of the market, from 19 to 18.
The good news: The index is at double its level from last spring – when it bottomed out at nine – meaning homebuilders see an improving market.
The bad news: The index is based so that a reading of 50 is the “neutral market” view. That means there’s a long way to go, yet.
But even if Congress doesn’t opt to extend the $8,000 tax credit, 30-year mortgage rates are still down around 5.1% – close to their all-time low. But rates probably won’t remain that low for long: Building inflationary pressures and the huge U.S. budget deficit will combine to push interest rates higher.
In other words, even if housing prices are destined to drop by another 10% (except in the very worst areas, I wouldn’t expect you’d see anymore than that), you still may end up saving so much on financing costs by borrowing now that you’d be mad to wait any longer.
Housing arithmetic is always complicated but one thing I do know: 7% of $90,000 is more than 5.1% of $100,000!
The S&P/Case-Shiller composite home price index bounced nicely in July, with the 20-city index rising 1.5%, after a 1.3% jump the previous month. That’s a pretty good indication that the markets have bottomed out.
What’s more, the $8,000 credit for first-time buyers was still in force for August and September transactions (you need to close to get the credit, so deals done before Sept. 30 should squeeze under the wire). Since interest rates remained low for those months, it’s likely we’ll see further price rises then, too.
That would mirror the market in Britain, where housing prices bottomed out last spring and have risen for the six months since. Indeed, the market in London for houses priced above 5 million pounds (about $7.5 million) is apparently exceptionally strong, because of the likely level of Goldman Sachs Group Inc. (NYSE: GS) bonuses!
For those of us who aren’t about to receive a Goldman Sachs bonus, or buy a house priced above $7.5 million, the short-term outlook is still pretty good. U.S. gross domestic product (GDP) almost certainly rose during the third quarter – probably by about 3% – and is expected to rise again in the fourth quarter.
That should translate into an abatement of the flood of job losses – perhaps from the 250,000-per-month rate of the last few months to around 100,000 per month. That’s still bad, but is indicative of a recovery ahead. At that point, the outlook for the housing market will depend on what region you live in.
In Florida, California and Nevada – where prices have dropped more than 40% – there may still be a large number of foreclosures and unoccupied new buildings left over from the bubble. In those markets, therefore, the excess supply may take time to absorb.
Similarly, even with the government bailout of the automobile industry, I probably wouldn’t invest heavily in Detroit, even though prices there are lower than they were in 1995. However, in such cities as Atlanta and Dallas, prices did not rise too much in the bubble – and haven’t dropped all that much since – so the market should rest on a firm foundation and we can expect it to advance.
Beyond 2009, the prognostication is still murky. On the one hand, even a slow economic recovery should induce consumers to more seriously consider home purchases. And with inflation apparently on the upswing, the prices of those houses can be expected to increase, as well.
On the other hand, if inflation really gets a grip, the U.S. Federal Reserve will have no alternative but to raise interest rates. Housing is the most-interest-rate sensitive sector of consumer spending. So if rates rise sharply, the housing market will inevitably suffer.
As for the $8,000 credit for first-time homebuyers, it doesn’t really matter. It’s like the “Cash-for-Clunkers” program. If Congress extends it, it will prop up the housing market a bit. But if Congress doesn’t, there will be no disaster – the market will simply fall back for a few months until demand catches up with supply.
It makes only a modest short-term difference in activity, and probably only a 1% to 2% difference in the level of housing prices.
If you’ve got the money, go buy a house. You won’t find a better time to strike.
Monday, October 26, 2009
aj kuch batta hun
ek pechida sawal hai
hai to meri jindgi me 2no per tujhe kya du
ye sochta hun
aj kuch batta hun
apno ne kab ka sath chor diya
teri yad bhi yadon ke panno me dab si gayi hai
tu kaisi thi ,ye sochta hun jehan me tatolta hun
teri yado ko aoni ankhon me khojta hun
apne jehan se teri yadon ko apne in ankhon me batta hun
aj kuch batta hun
aj kuch hai mere pass to kuch kitabe
jo kai dino se mej pe pade hain
kuch paise jo kahan hai ,use khojta hun
inhe batun ya rankhun ye sochta hun
aj kuch batta hun
per kya wo sochta hun....
aj kuch batta hun......
main aur ap
dur hokar bhi roj mite hain
kuch nayi kuch purani Baton
per roj jagarte hain
hain 2no ek dusro se anjan
per kyun hum ek dusre ka intjar karte hain
pata nahi
main aur ap dur hokar bhi kyun roj milte hain
kuch ap me kuch mujhme
kuch us anjane palme
jo kab hume sath aur kab dura kar hai
phir bhi hum bekhabar us pal ka intejar kyun karte hain
main aur ap dur hokar bhi kyun roj milte hain
ap kaun hain ye mani nahi janta
main kaun hun ye ap nahi janti
phir bhi 2no me kuch hai
jo hum eek dahge me kyun bandta hai
kyun mujhe apki aur kichta hai
pata nahi kyun main aur…
ap sapna hain ya haquequat main nahijanta
ap osh ki bund hai ya sawan ki barish main nahi janta
per kyun ap ki ahat mere rom rom ko bhinga jati hai
pata nahi kyun main aur ap dur hokar bhi kyun roj milte hain..
ap ki awaj ko main sun to nahi sakta
per ap ki churion ki khanak mujhe kyun sunai padti hai
main ap ko delh to nahi sakta
per meri kalpana me ap ki murat kyun dikhai deti hai
is anjane riston ko main kya samjhu
sach ya sapna ye nahi janta
phir main aur ap dur hokar kyun roj milte hain……………………………………