sidhanth

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Wednesday, May 12, 2010

मृत्यु अन्त है पैर मैं मृत्यु नहीं
जिन्दगी सुन्दर है पर जिन्दगी अपनी नहीं
खोजता हूँ किसी की नजरो से अपनी जिन्दगी
पर भटकती उन आँखों में कोई सपना नहीं
हर लब्ज में छुपी है एक आह्ह पर कोई सुनता नहीं
इन सपनो की रंगीन dunyian मैं कोई सपना हकीकत नहीं
हाँ जिन्दगी अनमोल है पर मौत से परे नहीं
मैं खामोश जिन्दगी की इन kashmashat से भरी राहों पर अकेला नहीं
फिर मौत से मैं क्यूँ डरु जो अपना नहीं
चलो एक बार फिर जिन्दगी की खोज में
मुस्कुराते खवाबों के देश में
अपनों के देश में
अपनी माटी के गोद में
मचलती जिन्दगी के आगोश में
मृत्यु तो अपनी संगनी है एक दिन आयेगी
दुल्हन की तरह और विदा कर जाएगी मुझे जिन्दगी की गोद से
मैं चला एक अकरी कोशिश जिन्दगी की और
अपनों की और
मैं चला ...............

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