sidhanth

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Sunday, March 28, 2010

सुबह जब भी मेरी आंखे खुलती हैं पिछले कुछ दिनों से एक अजीब सा फिजाओं में दर्द सा मह्सुश होता है ,इन सबो में कुछ राज सा दबा है .मैं जहाँ रहता हूँ वहां आसपास सायद देश का सबसे बड़ा निर्माण का कम चल रहा है अछा लगता है पर २ साल पहले यहाँ हरे भरे खेत थे जहाँ आज ऊँची इमारते हैं . उन इमार्तोने के सिस्शे से जब भी मैं बहार देखता हूँ मुझे सडको दीवारों पे धरती के अंशु दीखते हैं बड़ी अजीब बात है ये मेरे साथ क्यूँ होता है .आज मेरे पोड्स में शांति है सायद वो लोग कहीं गए हैं होली मानाने पर जब वो जा रहे थे तो उनके चेरे पे मुझे कुशी नहीं देखि लगा जैसे मनो वो कोई कम से जा रहे हो न कोई पर्व हो...

हैं तो मैं उस खिरकी पैर था ..पता है मुझे क्यूँ लगता है ये स्वर्ग नरक कुछ हैं हिन् नहीं आत्मा और ये भगवान सायद ये दुनियां के कुछ उन सुलझे पहलु हैं ,मुझे लगता है ये सभी इसी दुनियां में हैं किसी खिरकी के पीछे जिसके पार हमारी आंखे नहीं देख सकती हैं..

पर सायद वो भी खिरकी पार नहीं देख सकते हैं
यानि कुछ हैं हिन् नहीं बस एक कल्पना एक छह के सवारे ये दुनियां चल रही है .

मैं यहाँ अप लोग्से जब जुदा तो कुछ आचे लोगों से जन पहचान बाते हुई जो एक अछा
था पर क्यूँ मुझे ऐसा लगता है की सब एक अजीब से kashmashat में जी रहे हैं ...सायद वो हसने की एक नाकाम कोशिश है.....

Wednesday, March 24, 2010

जिन्दगी.....
मृत्यु के पार एक सत्य है जो अनकही उन्सुल्झी अप्रत्यच अनजान खामोश सांत विश्मय्कारी कभी रौशनी कभी अँधेरा कभी कमोश तो कभी एक शोर पर इन सबसे परे एक जिन्दगी है चंचल हंसती गुनगुनाती तन्हाई में अपनों की याद दिलाती अछी प्यारी ,जीवन के एक पहलू सी अपने आप से सिमटती जिन्दगी ,
पर तभी मृत्यु की एहाश कराती जिन्दगी अपनों से अलग करती जिन्दगी दर्द में तड़प दिअलती जिन्दगी बिछरों की याद दिलाती जिन्दगी आंशु में हंशी को मिलाती जिन्दगी ,एक सच उन्सुल्झी अदभूत सी गुनगुनाती जिन्दगी..

Monday, March 22, 2010

अब कुछ दिन और फिर ये शोर एक कमोशी कई अनसुलझे सवालों को दिल में दबाकर हम बहूत दूर चलेजायेंगे कितनी दूर ये मैं और आप नहीं जानते हैं फिर दुरी बढती हिन् जाएगी सरे मिलने के वादे सपने सब दब जायेंगे और हम सब दूर बहूत दूर हो जायेंगे अपनों से आप लोगों से ...बस यद् आयेंगी ये पल ये राते और एक मुस्कान ...और फिर वही जिंदगी की दौर ...मैं इन पलों को अपने इन आँखों में कैद कर के बहूत दूर सबसे दूर अपने आप से दूर हो जायूँगा बस यह याद रखना की लास्ट बेंच पैर कोई बैठता था

Saturday, March 13, 2010

Window.........

Window ?
Every day when I saw the glass of window I think whats the need of this window why not we we make a home without window .

at that time i m thinking to construct a house without window ...but suddenly I think there must be some reason to create window ...

My friend says for escaping ,wind ,light and view ..... ...but for what then why not we put gate inside the window no answer ...might be he is right or wrong ..but whats the need for window

Then suddenly ,,ohhh I cant believe it ...yes I got the answer

my friend is right ...

Wind a symbol of free thought ...window say open u r mind let bring some gud thought inside u r body

Light ..a symbol of shine growth ...window say open u r soul let combine to eternal god and feel them...

View ..change u r attitude so bring purity and try to differentiate u r self between right or wrong..

We must open our window to adopt changes other wise we pollute ourself and society too..

so ,its a time to open our window...

Accept the Unexpected

When we least expect it , life sets us a challenge to test our courage and willingness to change . At such moment ,there is no point in pretending that nothing has happened . The challenge will not wait .Life does not look back .A week is more than enough for us to decide whether or not to accept our destiny..

Wednesday, March 10, 2010

BRAHAM

aaj aam manush bada ajib si jindgi ji raha hai ghutan ,jalan,dwesh...jaise lagta hai mano ko jakdan ho sarir me ..is comm me kuch dino se jis tarah bat hota hai yahin nahi almost 100 comm jisme main kabhi kabhr jata hun charo aur mar kat ..kya humlog is kapnik duniyan aur isejude log per hum gussa nikalte hain


chae wo ladki ka majak udana ya kisi ladk eper badi ajib si kiuntha chal rahi hai logo ke dimag me kuch samahj me nahi ata hai kyun kis liyea...

sayd koi jawab mere pass bhi nahi..per hum itne karib aur itni karwahat kyun..main ye nahi bolta main isse alag hun main khud iska hissa hun..is ghutan ka is bechani ka ...

main jab gher ata hun to wahi white diwar wahi desk wahi sabkuch ..jaise lagta ho mano ek diwal dusre diwal ko samne khada dekh hans raha ho.mere us diwar me kya anter wo bhi shant sthir main bhi ...bus puri rat meri angluyian bolti hai jiski dhwani main sun sakta hun..

hum ye kaise braham me ji rahe hain sayd ye humare soch se pare hai..

Saturday, March 6, 2010

Put convexity in u r life that every minute mistake create a ripple which change your future...............

Monday, March 1, 2010

babhra ki yad me

अब की होली बभ्रा बिन तर्शे नयन
गलियां सुनी सजन बिन
सोचा वो आएंगे
चना साथ लायेंगे
जिसे बनायुंगी बभ्रा
पर ना वो ए ना मणि होली

भीर से भरी गलियां लगी अज्ज सुनी
बभ्रा तुम बिन अबकी बरी सुनी लगी होली