sidhanth

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Monday, August 8, 2011

मैं तुम्हे चाहता पर तुम जान जाती काश उस प्यार को जो सिमट कर रह गया इन बाहों में जो सायद तेरा था , पर तुम जान जाती काश उस प्यार को जो इन आँखों से बह गया अंशु बन तेरी याद में काश तुम उस नमी को मेहश कर पाती तो जान जाती उस रत भी मैं आया था तेरे घर पर पर काश तुम जान जाती ..वो आखरी रत थी ..काश तुम जान जाती की उस प्यार का मोल लगा था उस रात के बाज़ार में काश तुम जान जाती उस प्यार को जो बस अब सिमट कर रह गया है
मेरे इन दो बाहों में ..काश तुम जान जाती ...
9/August /2011/ 12:15 am

Friday, August 5, 2011

मैं एक आजाद देश का गुलाम नागरिक हूँ

मैं एक आजाद देश का गुलाम नागरिक हूँ जहाँ मुझे अक्सर हर रात सड़क के किनारे हिन् गुजारनी पड़ती है , कई बार अक्सर मैं किसी अमीर की गाड़ियों के निचे घुटकर इन्हीं सरको पे मरता हूँ ..जब मैं आया था तो काफी छोटा था यद् नहीं ..पैर हैं उस दिन बारिश का मौसम था और मैंने वो रात किसी लाल कोठी के सहारे काटी थी आज देखता हूँ तो वहां झंडे पहरते हैं मणि नहीं जानत की क्यूँ मुझे हर साल इस सदल से हटा दिया जाता है सावन की इस मौसम में ..कल भी रात बारिश थी..पैर अब उस लाल कोठी के चारो और लोहे की सलाखें हैं ..मैं उसे बहार से हिन् देख हस्त रह ..की ये लाल भारत का खून है जहाँ हर साल कुछ लोग आते हैं तमाशा दिखाते हैं और चले जाते हैं..कुछ २ पैसे दे ..सडक पे अब कुछ और बचे आगेये हैं ..अब मैं बुध हो चला इन पत्थर सी आँखों से देखता हूँ उस पर्चिर को जहाँ लोकतंतर मुझपर और इस देश की बेबसी पैर हस्त दीखता है ..सोचता हूँ की मार दूँ एक पत्थर फिर यद् अत है मैं एक आजाद देश का गुलाम नागरिक हूँ....और यहीं रेंगती गाडिओं में मेरी मौत हर रोज दौरती है ...